Monday, May 28, 2012

क्यों पीड़ा हो गई जीवन धन

क्यों पीड़ा हो गई जीवन धन 

मोती माणिक की धरती से
माँगे केवल सुख के कण ।
क्यों पीड़ा हो गई जीवन धन?

निशि तारों की लड़ियाँ गिन -गिन
अनगिन रातें बीत गईं
भोर किरण की आस में मुझ
विरहन की अँखियाँ भीज गईं।
कह दो ना अब कैसे झेलूँ
पर्वत जैसे दूभर क्षण ।
क्यों पीड़ा हो गई जीवन धन?

स्वप्न लोक आलोक खो गया
रात अमा की लौट के आई
पतवारों सी प्रीत थी तेरी
मँझधारों में छोड़ के आई ।
नयनों में प्रतिपल आ घिरते
सजल सघन अश्रुमय घन।
क्यों पीड़ा हो गई जीवन धन?

नियति का लेखा मिट न पाया
अश्रु-जल निर्झर बरसाया
निश्वासों के गहन धूम में
अँधियारा पल-पल गहराया।
अन्तर के अधरों पे मेरे
मौन बैठा प्रहरी बन।
क्यों पीड़ा हो गई जीवन धन?

Tuesday, May 22, 2012

आंसू - एक अनूठी सम्पदा .......

आंसुओं से कभी भी भयभीत मत होना। तथाकथित सभ्यता ने तुम्हें आंसुओं से अत्यंत भयभीत कर दिया है। इसने तुम्हारे भीतर एक तरह का अपराध भाव पैदा कर दिया है। जब आंसू आते हैं तो तुम शर्मिंदा महसूस करते हो। तुम्हें लगता है कि लोग क्या सोचते होंगे? मैं पुरुष होकर रो रहा हूं!यह कितना स्त्रैण और बचकाना लगता है। ऐसा नहीं होना चाहिये। तुम उन आंसुओं को रोक लेते हो… और तुम उसकी हत्या कर देते हो जो तुम्हारे भीतर पनप रहा होता है।

जो भी तुम्हारे पास है, आंसू उनमें सबसे अनूठी बात है, क्योंकि आंसू तुम्हारे अंतस के छलकने का परिणाम हैं। आंसू अनिवार्यत: दुख के ही द्योतक नहीं हैं; कई बार वे भावातिरेक से भी आते हैं, कई बार वे अपार शांति के कारण आते हैं, और कई बार वे आते हैं प्रेम व आनंद से। वास्तव में उनका दुख या सुख से कोई लेना-देना नहीं है। कुछ भी जो तुमारी ह्रदय को छू जाये, कुछ भी जो तुम्हें अपने में आविष्ट कर ले, कुछ भी जो अतिरेक में हो, जिसे तुम समाहित न कर सको, बहने लगता है, आंसुओं के रूप में ।

इन्हें अत्यंत अहोभाव से स्वीकार करो, इन्हें जीयो, उनका पोषण करो, इनका स्वागत करो, और आंसुओं से ही तुम जान पाओगे प्रार्थना करने की कला।

आंसुओं से तुम सीखोगे देखने की कला। आंसुओं से भरी आंखें सत्य को देखने की क्षमता रखती हैं। आंसुओं से भरी आंखें क्षमता रखती हैं जीवन के सौंदर्य को और इसके प्रसाद को महसूस करने की ....... !

Thursday, May 10, 2012

!!!!! भगत जयदेव जी !!!

!!!!! भगत जयदेव जी !!!
जब जयदेव गीत गोविन्द लिख रहे थे तो एक प्रसंग उन के हृदय में आया जिस में भगवान कृष्ण राधा को मनाने की खातिर कहते हैं की -‘हे राधे तुम अपने चरण कमलों को मेरे शिर पर रखो’ ''''लेकिन जयदेव जी को इस प्रसंग पर शंका हुई और इसे बीच में अधूरा छोड़ कर विचार करते हुए आप स्नान करने चले गए | जब वापिस आ कर देखा तो अचंभित रह गए की जैसा उन्होंने सोचा था वैसा ही शलोक लिखा हुआ पाया | पत्नी से पूछा तो पत्नी ने बताया की आप खुद हि आए थे और इसे लिखकर वापिस स्नान करने चले गए | इस पर जयदेव जी समझ गए की स्वयं भगवान यह पंक्तियाँ लिख कर गए हैं || गीत गोविन्द प्रेम और माधुर्य से परिपूर्ण है |

जयदेव जी एक महान भगत और कवी थे | आप जी का संस्कृत भाषा में रचा हुआ ‘गीत गोविन्द’ बहुत प्रसिद्ध है |

आप का जन्म पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिल्हे में, सूरी के नजदीक केंदुली गाँव में पिता भोइदेव के घर माता बामदेवी की कोख से हुआ| आप की गणना महान कवियों में की जाती है | आप बंगाल के राजा लक्ष्मण सेन के दरबार के पांच रत्नों में से एक थे | आप बचपन से ही संस्कृत के महान कवी थे | जयदेव हमेशा परमेश्वर भगति में खोए रहते थे 

आप जी का विवाह पद्मावती से हुआ | पद्मावती जगन्नाथ में रहने वाले ब्राह्मण की कन्या थी | युवा होने पर पद्मावती के पिता पद्मावती को मंदिर में नृत्य करने के लिये दान करने को ले गए | मंदिर में मूर्ति ने पद्मावती को संत जयदेव को अर्पण करने को कहा |

पद्मावती के पिता ने जयदेव को जा कर सारा वृतांत सुनाया और पद्मावती को पत्नी के रूप में स्वीकार करने की प्रार्थना की लेकिन काफी अनुग्रह के बाद भी जयदेव ना माने | इस पर पद्मावती के पिता पद्मावती को जयदेव के पास यह कह कर छोड़ गए की मै प्रभु की आज्ञा का उलंघन नहीं कर सकता | जाते समय पिता ने पद्मावती को जयदेव के साथ रहने और उनकी सेवा करने का निर्देश दिया |

पद्मावती जयदेव जी की जी जान से सेवा करने लगी | आप की सेवा से प्रसन्न हो कर और परमेश्वर की इच्छा का सत्कार करते हुए जयदेव ने पद्मावती को पत्नी के रूप में स्वीकार किया|