क्या मैं आप से पुछू कि जिसे आप खोज रहे है, क्या वह आप से दूर है ? जो दूर हो उसे खोजा जा सकता है, पर जो स्वयं आप हो, उसे कैसे खोजा जा सकता है ?
जिस अर्थ में शेष सब खोजा जा सकता है, स्व उसी अर्थ में नहीं खोजा जा सकता है ! वहाँ जो खोज रहा है, और जिसे खोज रहा है, उन दोनों में दूरी जो नहीं है ! संसार की खोज होती है, स्वयं की खोज नहीं होती है ! और जो स्वयं को खोजने निकल पड़ते है, वे स्वयं से और दूर ही निकल जाते है !
यह सत्य ठीक से समझ लेना आवश्यक है, तो खोज हो भी सकती है ! संसार को पाना हो तो बाहर खोजना पड़ता है और यदि स्वयं को पाना हो तो सब खोज छोड़ कर अनुदिव्ग्न और स्थिर होना पड़ता है ! उस पूर्ण शांति और शून्य में ही उसका दर्शन होता है, जो कि मैं हूँ !
जिस अर्थ में शेष सब खोजा जा सकता है, स्व उसी अर्थ में नहीं खोजा जा सकता है ! वहाँ जो खोज रहा है, और जिसे खोज रहा है, उन दोनों में दूरी जो नहीं है ! संसार की खोज होती है, स्वयं की खोज नहीं होती है ! और जो स्वयं को खोजने निकल पड़ते है, वे स्वयं से और दूर ही निकल जाते है !
यह सत्य ठीक से समझ लेना आवश्यक है, तो खोज हो भी सकती है ! संसार को पाना हो तो बाहर खोजना पड़ता है और यदि स्वयं को पाना हो तो सब खोज छोड़ कर अनुदिव्ग्न और स्थिर होना पड़ता है ! उस पूर्ण शांति और शून्य में ही उसका दर्शन होता है, जो कि मैं हूँ !
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