Thursday, May 10, 2012

!!!!! भगत जयदेव जी !!!

!!!!! भगत जयदेव जी !!!
जब जयदेव गीत गोविन्द लिख रहे थे तो एक प्रसंग उन के हृदय में आया जिस में भगवान कृष्ण राधा को मनाने की खातिर कहते हैं की -‘हे राधे तुम अपने चरण कमलों को मेरे शिर पर रखो’ ''''लेकिन जयदेव जी को इस प्रसंग पर शंका हुई और इसे बीच में अधूरा छोड़ कर विचार करते हुए आप स्नान करने चले गए | जब वापिस आ कर देखा तो अचंभित रह गए की जैसा उन्होंने सोचा था वैसा ही शलोक लिखा हुआ पाया | पत्नी से पूछा तो पत्नी ने बताया की आप खुद हि आए थे और इसे लिखकर वापिस स्नान करने चले गए | इस पर जयदेव जी समझ गए की स्वयं भगवान यह पंक्तियाँ लिख कर गए हैं || गीत गोविन्द प्रेम और माधुर्य से परिपूर्ण है |

जयदेव जी एक महान भगत और कवी थे | आप जी का संस्कृत भाषा में रचा हुआ ‘गीत गोविन्द’ बहुत प्रसिद्ध है |

आप का जन्म पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिल्हे में, सूरी के नजदीक केंदुली गाँव में पिता भोइदेव के घर माता बामदेवी की कोख से हुआ| आप की गणना महान कवियों में की जाती है | आप बंगाल के राजा लक्ष्मण सेन के दरबार के पांच रत्नों में से एक थे | आप बचपन से ही संस्कृत के महान कवी थे | जयदेव हमेशा परमेश्वर भगति में खोए रहते थे 

आप जी का विवाह पद्मावती से हुआ | पद्मावती जगन्नाथ में रहने वाले ब्राह्मण की कन्या थी | युवा होने पर पद्मावती के पिता पद्मावती को मंदिर में नृत्य करने के लिये दान करने को ले गए | मंदिर में मूर्ति ने पद्मावती को संत जयदेव को अर्पण करने को कहा |

पद्मावती के पिता ने जयदेव को जा कर सारा वृतांत सुनाया और पद्मावती को पत्नी के रूप में स्वीकार करने की प्रार्थना की लेकिन काफी अनुग्रह के बाद भी जयदेव ना माने | इस पर पद्मावती के पिता पद्मावती को जयदेव के पास यह कह कर छोड़ गए की मै प्रभु की आज्ञा का उलंघन नहीं कर सकता | जाते समय पिता ने पद्मावती को जयदेव के साथ रहने और उनकी सेवा करने का निर्देश दिया |

पद्मावती जयदेव जी की जी जान से सेवा करने लगी | आप की सेवा से प्रसन्न हो कर और परमेश्वर की इच्छा का सत्कार करते हुए जयदेव ने पद्मावती को पत्नी के रूप में स्वीकार किया|

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