Wednesday, August 22, 2012

फ़कीरी में

आप सभी दोस्तों का हृदय की असीम गहराईयोँ से हार्दिक आभार प्रकट करता हूँ जय श्री कृष्णा.

मन लाग्यो मेरो यार
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ..

...
जो सुख पाऊँ राम भजन में
सो सुख नाहिं अमीरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ..

भला बुरा सब का सुन लीजै
कर गुजरान गरीबी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ..


आखिर यह तन छार मिलेगा
कहाँ फिरत मग़रूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ..

प्रेम नगर में रहनी हमारी
साहिब मिले सबूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ..

कहत कबीर सुनो भयी साधो
साहिब मिले सबूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में

पुरुषोत्तम मास के नियम

आपका दिन प्रगतिमय रहे..♥

पुरुषोत्तम मास के नियम -
पुरुषोत्तम मास का दूसरा नाम मल मास है | ‘मल’ कहते हैं पाप को और ‘पुरुषोत्तम’ नाम है भगवान् का | इसलिए हमें इसका अर्थ यों लगाना चाहिए की पापों को छोडकर भगवान पुरुषोत्तम में प्रेम करें और वो ऐसा करें की इस एक महीने का प्रेम अनंत कालके लिए चिरस्थायी हो जाए | भगवान में प्रेम करना ही तो जीवन का परम-पुरुषार्थ ...
है, इसी केलिए तो हमें दुर्लभ मनुष्य जीवन और सदसद्विवेक प्राप्त हुआ है | हमारे ऋषियों ने पर्वों और शुभ दिनों की रचना कर उस विवेक को निरंतर जागृत रखने
के लिए सुलभ साधन बना दिया है, इसपर भी यदि हम ना चेतें तो हमारी बड़ी भूल है |
इस पुरुषोत्तम मास में परमात्मा का प्रेम प्राप्त करनेके लिए यदि सबही नर-नारी निम्नलिखित नियमों को महीनेभर तक सावधानी के साथ पालें तो उन्हें बहुत कुछ लाभ होने की संभावना है |
१. प्रात:काल सूर्योदय से पहले उठें |
२. गीताजी के पुरुषोत्तम-योग नामक १५ वे अध्याय का प्रतिदिन श्रद्धा पूर्वक पाठ करें | श्रीमद भागवत का पाठ करें, सुनें | संस्कृत के श्लोक ना पढ़ सकें तो अर्थों का ही पाठ करलें |
३. स्त्री-पुरुष दोनों एक मतसे महीनेभर तक ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें | जमीनपर सोवें |
४. प्रतिदिन घंटे भर किसी भी नियत समयपर मौन रहकर अपनी-अपनी रूचि और विश्वास के अनुसार भगवान् का भजन करें |
५. जान-बूझकर झूठ ना बोलें | किसीकी निंदा ना करें |
६. भोजन और वस्त्रों में जहां तक बन सके, पूरी शुद्धि और सादगी बरतें | पत्तेपर भोजन करें, भोजन में हविष्यान्न ही खाएं |
७. माता,पिता,गुरु,स्वामी आदि बड़ों के चरणोंमें प्रतिदिन प्रणाम करें | भगवान पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण की पूजा करें|
पुरुषोत्तम मास में दान देनेका और त्याग करनेका बड़ा महत्त्व माना गया है, इसलिए जहां तक बन सके, जिसके पास जो चीज़ हो वाही योग्य पात्र के प्रति दान देकर परमात्मा की सेवा करनी चाहिए | त्याग करनेमें तो सबसे पहले पापों का त्याग करना ही जरूरी है | जो भाई या बहन हिम्मत करके कर सकें, वे जीवन भर के लिए झूठ, क्रोध और दूसरों की जान-बूझकर बुराई करना छोड़ दें |
जीवन भर का व्रत लेनेकी हिम्मत ना हो सकें तो जितने अधिक दिनों का ले सकें, उतना ही लें | परन्तु जो भाई-बहन दिलकी कमजोरी, इन्द्रियों की आसक्ति, बुरी संगती अथवा बिगड़ी हुयी आदत के कारण मांस खाते हैं और मदिरा-पान करते हैं तथा पर-स्त्री और पर-पुरुष से अनुचित संबंध रखते हैं, उनसे तो हम हाथ-जोड़कर प्रार्थना करते हैं की वे इन बुराईयोंको सदा के लिए छोडकर दयामय प्रभुसे अब तक की भूल के लिए क्षमा मांगे |
जो भाई-बहन ऊपर लिखे सातों नियम जीवन-भर पाल सकें तो पालने की चेष्ठा करें, कम-से-कम चातुर्मास नहीं तो पुरुषोत्तम महीने भर तक तो जरूर पालें और भविष्य में सदा इसे पालने के लिए अपनेको तैयार करें | अपनी कमजोरी देखकर निराश ना हों, दया के सागर और परम करुनामय भगवान का आश्रय लेनेसे असंभव भी संभव हो जाता है* |
*जितने नियम कम-से-कम पालन कर सकें उतने अवश्य ही पालें |
Photo: पुरुषोत्तम मास के नियम - पुरुषोत्तम मास का दूसरा नाम मल मास है | ‘मल’ कहते हैं पाप को और ‘पुरुषोत्तम’ नाम है भगवान् का | इसलिए हमें इसका अर्थ यों लगाना चाहिए की पापों को छोडकर भगवान पुरुषोत्तम में प्रेम करें और वो ऐसा करें की इस एक महीने का प्रेम अनंत कालके लिए चिरस्थायी हो जाए | भगवान में प्रेम करना ही तो जीवन का परम-पुरुषार्थ है, इसी केलिए तो हमें दुर्लभ मनुष्य जीवन और सदसद्विवेक प्राप्त हुआ है | हमारे ऋषियों ने पर्वों और शुभ दिनों की रचना कर उस विवेक को निरंतर जागृत रखने के लिए सुलभ साधन बना दिया है, इसपर भी यदि हम ना चेतें तो हमारी बड़ी भूल है | इस पुरुषोत्तम मास में परमात्मा का प्रेम प्राप्त करनेके लिए यदि सबही नर-नारी निम्नलिखित नियमों को महीनेभर तक सावधानी के साथ पालें तो उन्हें बहुत कुछ लाभ होने की संभावना है | १. प्रात:काल सूर्योदय से पहले उठें | २. गीताजी के पुरुषोत्तम-योग नामक १५ वे अध्याय का प्रतिदिन श्रद्धा पूर्वक पाठ करें | श्रीमद भागवत का पाठ करें, सुनें | संस्कृत के श्लोक ना पढ़ सकें तो अर्थों का ही पाठ करलें | ३. स्त्री-पुरुष दोनों एक मतसे महीनेभर तक ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें | जमीनपर सोवें | ४. प्रतिदिन घंटे भर किसी भी नियत समयपर मौन रहकर अपनी-अपनी रूचि और विश्वास के अनुसार भगवान् का भजन करें | ५. जान-बूझकर झूठ ना बोलें | किसीकी निंदा ना करें | ६. भोजन और वस्त्रों में जहां तक बन सके, पूरी शुद्धि और सादगी बरतें | पत्तेपर भोजन करें, भोजन में हविष्यान्न ही खाएं | ७. माता,पिता,गुरु,स्वामी आदि बड़ों के चरणोंमें प्रतिदिन प्रणाम करें | भगवान पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण की पूजा करें| पुरुषोत्तम मास में दान देनेका और त्याग करनेका बड़ा महत्त्व माना गया है, इसलिए जहां तक बन सके, जिसके पास जो चीज़ हो वाही योग्य पात्र के प्रति दान देकर परमात्मा की सेवा करनी चाहिए | त्याग करनेमें तो सबसे पहले पापों का त्याग करना ही जरूरी है | जो भाई या बहन हिम्मत करके कर सकें, वे जीवन भर के लिए झूठ, क्रोध और दूसरों की जान-बूझकर बुराई करना छोड़ दें | जीवन भर का व्रत लेनेकी हिम्मत ना हो सकें तो जितने अधिक दिनों का ले सकें, उतना ही लें | परन्तु जो भाई-बहन दिलकी कमजोरी, इन्द्रियों की आसक्ति, बुरी संगती अथवा बिगड़ी हुयी आदत के कारण मांस खाते हैं और मदिरा-पान करते हैं तथा पर-स्त्री और पर-पुरुष से अनुचित संबंध रखते हैं, उनसे तो हम हाथ-जोड़कर प्रार्थना करते हैं की वे इन बुराईयोंको सदा के लिए छोडकर दयामय प्रभुसे अब तक की भूल के लिए क्षमा मांगे | जो भाई-बहन ऊपर लिखे सातों नियम जीवन-भर पाल सकें तो पालने की चेष्ठा करें, कम-से-कम चातुर्मास नहीं तो पुरुषोत्तम महीने भर तक तो जरूर पालें और भविष्य में सदा इसे पालने के लिए अपनेको तैयार करें | अपनी कमजोरी देखकर निराश ना हों, दया के सागर और परम करुनामय भगवान का आश्रय लेनेसे असंभव भी संभव हो जाता है* | *जितने नियम कम-से-कम पालन कर सकें उतने अवश्य ही पालें |


सुप्रभात...आपका हर दिन सुहाना हो ..!!

Monday, May 28, 2012

क्यों पीड़ा हो गई जीवन धन

क्यों पीड़ा हो गई जीवन धन 

मोती माणिक की धरती से
माँगे केवल सुख के कण ।
क्यों पीड़ा हो गई जीवन धन?

निशि तारों की लड़ियाँ गिन -गिन
अनगिन रातें बीत गईं
भोर किरण की आस में मुझ
विरहन की अँखियाँ भीज गईं।
कह दो ना अब कैसे झेलूँ
पर्वत जैसे दूभर क्षण ।
क्यों पीड़ा हो गई जीवन धन?

स्वप्न लोक आलोक खो गया
रात अमा की लौट के आई
पतवारों सी प्रीत थी तेरी
मँझधारों में छोड़ के आई ।
नयनों में प्रतिपल आ घिरते
सजल सघन अश्रुमय घन।
क्यों पीड़ा हो गई जीवन धन?

नियति का लेखा मिट न पाया
अश्रु-जल निर्झर बरसाया
निश्वासों के गहन धूम में
अँधियारा पल-पल गहराया।
अन्तर के अधरों पे मेरे
मौन बैठा प्रहरी बन।
क्यों पीड़ा हो गई जीवन धन?

Tuesday, May 22, 2012

आंसू - एक अनूठी सम्पदा .......

आंसुओं से कभी भी भयभीत मत होना। तथाकथित सभ्यता ने तुम्हें आंसुओं से अत्यंत भयभीत कर दिया है। इसने तुम्हारे भीतर एक तरह का अपराध भाव पैदा कर दिया है। जब आंसू आते हैं तो तुम शर्मिंदा महसूस करते हो। तुम्हें लगता है कि लोग क्या सोचते होंगे? मैं पुरुष होकर रो रहा हूं!यह कितना स्त्रैण और बचकाना लगता है। ऐसा नहीं होना चाहिये। तुम उन आंसुओं को रोक लेते हो… और तुम उसकी हत्या कर देते हो जो तुम्हारे भीतर पनप रहा होता है।

जो भी तुम्हारे पास है, आंसू उनमें सबसे अनूठी बात है, क्योंकि आंसू तुम्हारे अंतस के छलकने का परिणाम हैं। आंसू अनिवार्यत: दुख के ही द्योतक नहीं हैं; कई बार वे भावातिरेक से भी आते हैं, कई बार वे अपार शांति के कारण आते हैं, और कई बार वे आते हैं प्रेम व आनंद से। वास्तव में उनका दुख या सुख से कोई लेना-देना नहीं है। कुछ भी जो तुमारी ह्रदय को छू जाये, कुछ भी जो तुम्हें अपने में आविष्ट कर ले, कुछ भी जो अतिरेक में हो, जिसे तुम समाहित न कर सको, बहने लगता है, आंसुओं के रूप में ।

इन्हें अत्यंत अहोभाव से स्वीकार करो, इन्हें जीयो, उनका पोषण करो, इनका स्वागत करो, और आंसुओं से ही तुम जान पाओगे प्रार्थना करने की कला।

आंसुओं से तुम सीखोगे देखने की कला। आंसुओं से भरी आंखें सत्य को देखने की क्षमता रखती हैं। आंसुओं से भरी आंखें क्षमता रखती हैं जीवन के सौंदर्य को और इसके प्रसाद को महसूस करने की ....... !

Thursday, May 10, 2012

!!!!! भगत जयदेव जी !!!

!!!!! भगत जयदेव जी !!!
जब जयदेव गीत गोविन्द लिख रहे थे तो एक प्रसंग उन के हृदय में आया जिस में भगवान कृष्ण राधा को मनाने की खातिर कहते हैं की -‘हे राधे तुम अपने चरण कमलों को मेरे शिर पर रखो’ ''''लेकिन जयदेव जी को इस प्रसंग पर शंका हुई और इसे बीच में अधूरा छोड़ कर विचार करते हुए आप स्नान करने चले गए | जब वापिस आ कर देखा तो अचंभित रह गए की जैसा उन्होंने सोचा था वैसा ही शलोक लिखा हुआ पाया | पत्नी से पूछा तो पत्नी ने बताया की आप खुद हि आए थे और इसे लिखकर वापिस स्नान करने चले गए | इस पर जयदेव जी समझ गए की स्वयं भगवान यह पंक्तियाँ लिख कर गए हैं || गीत गोविन्द प्रेम और माधुर्य से परिपूर्ण है |

जयदेव जी एक महान भगत और कवी थे | आप जी का संस्कृत भाषा में रचा हुआ ‘गीत गोविन्द’ बहुत प्रसिद्ध है |

आप का जन्म पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिल्हे में, सूरी के नजदीक केंदुली गाँव में पिता भोइदेव के घर माता बामदेवी की कोख से हुआ| आप की गणना महान कवियों में की जाती है | आप बंगाल के राजा लक्ष्मण सेन के दरबार के पांच रत्नों में से एक थे | आप बचपन से ही संस्कृत के महान कवी थे | जयदेव हमेशा परमेश्वर भगति में खोए रहते थे 

आप जी का विवाह पद्मावती से हुआ | पद्मावती जगन्नाथ में रहने वाले ब्राह्मण की कन्या थी | युवा होने पर पद्मावती के पिता पद्मावती को मंदिर में नृत्य करने के लिये दान करने को ले गए | मंदिर में मूर्ति ने पद्मावती को संत जयदेव को अर्पण करने को कहा |

पद्मावती के पिता ने जयदेव को जा कर सारा वृतांत सुनाया और पद्मावती को पत्नी के रूप में स्वीकार करने की प्रार्थना की लेकिन काफी अनुग्रह के बाद भी जयदेव ना माने | इस पर पद्मावती के पिता पद्मावती को जयदेव के पास यह कह कर छोड़ गए की मै प्रभु की आज्ञा का उलंघन नहीं कर सकता | जाते समय पिता ने पद्मावती को जयदेव के साथ रहने और उनकी सेवा करने का निर्देश दिया |

पद्मावती जयदेव जी की जी जान से सेवा करने लगी | आप की सेवा से प्रसन्न हो कर और परमेश्वर की इच्छा का सत्कार करते हुए जयदेव ने पद्मावती को पत्नी के रूप में स्वीकार किया|

Friday, April 13, 2012

हर हर महादेव


हमेशा शांति की भीख मांगने वाले हिन्दुओं .....आजतक के इतिहास का सबसे बड़ा संकट हिन्दुओं पर आने वाला है , ईसाईयों के ८० देश और मुल्लो के ५६ देश है , और हिन्दुओं का एकमात्र देश भारत ही अब हिन्दुओं के लिए सुरक्षित नहीं रहा. भारत को एक फ़ोकट की धर्मशाला बना दिया गया है जहाँ इसके मेजबान हिन्दू ही बहुत जल्दी मुल्लो की सेना तैयार करने वाली संस्था PFI द्वारा शुरू होने वाले गृहयुद्ध में कश्मीर की तरह पुरे भारत में हिन्दुओं के हाथ पैर काट दिए जायेंगे, आंखे निकाल ली जाएँगी , बहन बेटियों के साथ सामूहिक बलात्कार करके उनकी छातियाँ काट के वहां अल्लाह के नाम की गरम मोहरे दाग के अपनी निशानी छोड़ दी जाएगी , और कश्मीर की ही तरह उनकी सुरक्षा के लिए कही पे भी सरकार नाम की दलाल संस्था कोई भी सेना नहीं भेजेगी और अगर भेजेगी भी तो मुलायम सिंह की तरह अयोध्या के रामभक्तों की तरह समस्त हिन्दुओं पे गोली चलने के लिए.....

नपुंसक हिन्दू खुद तो ख़तम हो रहा है और समस्त विश्व के कल्याण की बकवास करता फिरता है जबकि समूचा विश्व ईसाई और मुल्ला उसको पूरी तरह निगल लेने की पूरी तैयारी कर चूका है...आज तक हिन्दू जितनी अधिक उदारता और सज्जनता दिखलाता रहा है , उसको उतना ही कायर और मुर्ख मान कर उसपे अन्याय, और हर तरह का धार्मिक , सामाजिक और आर्थिक विश्वासघात किया जाता रहा है ...और हिन्दू है की आंख बंद कर के बस कहावतों में जिंदा रहकर बस भगवान के शांति स्वरूपं की पूजा करते करते सच में नपुंसक बन चूका है

जबकि हमारे किसी भी देवी देवता का स्वरुप अश्त्र -शस्त्र के बिना नहीं है , हमारे धर्म में धर्म की परिभाषा के १० लक्षणों में अहिंसा नाम का कोई शब्द ही नहीं है, रक्षा किया धर्म ही हम आर्यों की रक्षा कर सकता है.....इसके बाद भी अति भाग्यवादी, अवतारवादी हिन्दुओं ने आज तक अपनी दुर्दशा के इतिहास से कोई सबक न लेकर आज भी सेकुलार्ता का नशा लेकर मुर्छित होकर जी रहा है , और अपने ही शुभचिंतक भाइयों को सांप्रदायिक कहकर उनसे नपुंसक बनने की सीख देता फिरता है, अभी भी बच सकते हो आपस में लड़ना और सेकुलार्ता भूल कर सब खुद को बचने की बजे खुद ही आक्रमण की तैयारी में लग जाओ........अब महादेव जी के तांडव से ही कुछ सीख ले लो नकली पुजारियों ....हर हर महादेव

हमेशा शांति की भीख मांगने वाले हिन्दुओं .....आजतक के इतिहास का सबसे बड़ा संकट हिन्दुओं पर आने वाला है , ईसाईयों के ८० देश और मुल्लो के ५६ देश है , और हिन्दुओं का एकमात्र देश भारत ही अब हिन्दुओं के लिए सुरक्षित नहीं रहा. भारत को एक फ़ोकट की धर्मशाला बना दिया गया है जहाँ इसके मेजबान हिन्दू ही बहुत जल्दी मुल्लो की सेना तैयार करने वाली संस्था PFI द्वारा शुरू होने वाले गृहयुद्ध में कश्मीर की तरह पुरे भारत में हिन्दुओं के हाथ पैर काट दिए जायेंगे, आंखे निकाल ली जाएँगी , बहन बेटियों के साथ सामूहिक बलात्कार करके उनकी छातियाँ काट के वहां अल्लाह के नाम की गरम मोहरे दाग के अपनी निशानी छोड़ दी जाएगी , और कश्मीर की ही तरह उनकी सुरक्षा के लिए कही पे भी सरकार नाम की दलाल संस्था कोई भी सेना नहीं भेजेगी और अगर भेजेगी भी तो मुलायम सिंह की तरह अयोध्या के रामभक्तों की तरह समस्त हिन्दुओं पे गोली चलने के लिए.....

नपुंसक हिन्दू खुद तो ख़तम हो रहा है और समस्त विश्व के कल्याण की बकवास करता फिरता है जबकि समूचा विश्व ईसाई और मुल्ला उसको पूरी तरह निगल लेने की पूरी तैयारी कर चूका है...आज तक हिन्दू जितनी अधिक उदारता और सज्जनता दिखलाता रहा है , उसको उतना ही कायर और मुर्ख मान कर उसपे अन्याय, और हर तरह का धार्मिक , सामाजिक और आर्थिक विश्वासघात किया जाता रहा है ...और हिन्दू है की आंख बंद कर के बस कहावतों में जिंदा रहकर बस भगवान के शांति स्वरूपं की पूजा करते करते सच में नपुंसक बन चूका है

जबकि हमारे किसी भी देवी देवता का स्वरुप अश्त्र -शस्त्र के बिना नहीं है , हमारे धर्म में धर्म की परिभाषा के १० लक्षणों में अहिंसा नाम का कोई शब्द ही नहीं है, रक्षा किया धर्म ही हम आर्यों की रक्षा कर सकता है.....इसके बाद भी अति भाग्यवादी, अवतारवादी हिन्दुओं ने आज तक अपनी दुर्दशा के इतिहास से कोई सबक न लेकर आज भी सेकुलार्ता का नशा लेकर मुर्छित होकर जी रहा है , और अपने ही शुभचिंतक भाइयों को सांप्रदायिक कहकर उनसे नपुंसक बनने की सीख देता फिरता है, अभी भी बच सकते हो आपस में लड़ना और सेकुलार्ता भूल कर सब खुद को बचने की बजे खुद ही आक्रमण की तैयारी में लग जाओ........अब महादेव जी के तांडव से ही कुछ सीख ले लो नकली पुजारियों ....हर हर महादेव

Thursday, March 22, 2012

अहंकार

मैं लोगो को मंदिर जाते देखता हूँ :मैं उनको पूजा-आराधना करते देखता हूँ :मैं उन्हें ध्यान में बैठे देखता हूँ. . .पर यह सब उनके लिए क्रिया है. . . . . एक तनाव है ....एक अशांति है, और फिर वे इस अशांति में शांति के फूल लगने की आशा करते है, तो भूल में है !
सत्य को खोजे नहीं ! खोजने में अहंकार है ! और अहंकार ही तो बाधा है अपने को खो दे ! मिट जाए ! जब 'मैं=भाव' मिटता है, तब 'मैं-सत्ता ' मिलती है !........जैसे बीज जब अपने को तोड़ देता है,और मिटा देता है, तभी उसमें नवजीवन अंकुरित होता है, वैसे ही 'मैं' बीज है, वह आत्मा का बाहरी आवरण और खोल है, वह जब मिट जाता है तब अमृत जीवन के अंकुर का जन्म होता है ! 

Wednesday, March 21, 2012

मैं हूँ

क्या मैं आप से पुछू कि जिसे आप खोज रहे है, क्या वह आप से दूर है ? जो दूर हो उसे खोजा जा सकता है, पर जो स्वयं आप हो, उसे कैसे खोजा जा सकता है ? 
जिस अर्थ में शेष सब खोजा जा सकता है, स्व उसी अर्थ में नहीं खोजा जा सकता है ! वहाँ जो खोज रहा है, और जिसे खोज रहा है, उन दोनों में दूरी जो नहीं है ! संसार की खोज होती है, स्वयं की खोज नहीं होती है ! और जो स्वयं को खोजने निकल पड़ते है, वे स्वयं से और दूर ही निकल जाते है ! 
यह सत्य ठीक से समझ लेना आवश्यक है, तो खोज हो भी सकती है ! संसार को पाना हो तो बाहर खोजना पड़ता है और यदि स्वयं को पाना हो तो सब खोज छोड़ कर अनुदिव्ग्न और स्थिर होना पड़ता है ! उस पूर्ण शांति और शून्य में ही उसका दर्शन होता है, जो कि मैं हूँ ! 

Saturday, March 17, 2012

सत्य


सत्य तो नहीं सिखाया जा सकता पर सत्य को जानने कि विधि सिखाई जा सकती है ! .......इस विधि की कोई चर्चा नहीं है ! सत्य की चर्चा तो बहुत है ! पर सत्य-दर्शन की विधि की चर्चा नहीं है !
इस से बड़ी भूल नहीं हो सकती है !
यह तो प्राण को छोड़ देह को पकड लेने जैसा ही है ! इसके परिणाम स्वरूप ही धर्म तो बहुत है, धार्मिकता धर्म नहीं है ! आज जो संप्रदाय धर्म के नाम पर चलते दीख रहे है, वे धर्म नहीं है ! धर्म तो एक ही हो सकता है ! उसमे विशेषण नहीं लग सकता ! वह तो विशेषणशून्य है !
धर्म यानि धर्म वह 'यह' धर्म और 'वह' धर्म नहीं हो सकता है !
जहाँ 'यह' और 'वह' है, वहां धर्म नही है !

Friday, March 16, 2012

दर्शन की शक्ति


जो दृष्टा है, जो दर्शन की शक्ति है, उसका स्वयं दृश्य की भांति दर्शन नहीं हो सकता है ! विषय (Subject) कभी भी विषयी (Object) में परिणत और पतित नहीं हो सकता ! यह सरल सी, सीधी सी बात ध्यान में न आने से सारी भूल हो गई है ! परमात्मा की खोज होती है, जैसे वह कोई बाह्रा वस्तु है ! उसे पाने के लिए पर्वतो और वनों की यात्राये होती है, जैसे वह कोई बाह्रा व्यक्ति है ! यह सब कैसा पागलपन है ? उसे खोजना नहीं है, जो खोज रहा है, उसे ही जानने से वह मिल जाता है ! वह वही है ! खोज में नहीं, खोजने वाले में ही वह छिपा है !
सत्य आपके भीतर है ! सत्य मेरे भीतर है ! वह कल आपके भीतर नहीं होगा, वह इसी क्षण अभी और यही आपके भीतर है ! मैं हूँ यह होना ही मेरा सत्य है ! और जो भी मैं देख रहा हूँ, वह हो सकता है कि सत्य न हो, हो सकता है कि वह सब स्वप्न ही हो, क्योंकि मैं स्वप्न भी देखता हूँ और देखते समय वे सब सत्य ही ज्ञात होते है ! यह सब दिखाई पड़ रहा संसार भी स्वप्न ही हो सकता है ! आप मेरे लिए स्वप्न हो सकते है ! हो सकता है कि मैं स्वप्न में हूँ और आप उपस्थित नहीं है ! लेकिन देखने वाला दृष्टा असत्य नहीं हो सकता है ! वह स्वप्न नहीं हो सकता है, अन्यथा स्वप्न देखना उसे संभव नहीं हो सकता था !

Tuesday, March 13, 2012

शान्त परिस्थिति

इस शान्त परिस्थिति में......और आप को इस शान्त मन:स्थिति में मैं अवश्य ही वह कह सकूंगा. . .जो मैं कहना चाहता हूँ कि सबको कह दूँ, लेकिन बहरे हृदयों को देखकर अपने को रोक लेना पड़ता है !
सत्य की साधना के लिये चित्त की भूमि वैसे ही तैयार करनी होती है, जैसे फूलो को बोने के लिये पहले भूमि को तैयार किया जाता है !
पहला सूत्र: वर्तमान में जीना ! (Living in the Present) अतीत और भविष्य के चिंतन की यांत्रिक धारा में न बहे ! उसके कारण वर्तमान का जीवित क्षण (Living moment) व्यर्थ ही निकल जाता है ! जबकि केवल वही वास्तविक है ! न अतीत की कोई सत्ता है, न भविष्य की ! एक स्मृति में है, एक कल्पना में ! वास्तविक और जीवन केवल वर्तमान है ! सत्य को यदि जाना जा सकता है, तो केवल वर्तमान में होकर ही जाना जा सकता है !

Wednesday, February 29, 2012

अर्थ नहीं

हम सब अपने आपको आलोक से भरे तो ही वह प्रभात निकट आ सकता है ! उसकी संभावना को वास्तविकता में परिणत करना हमारे हाथो में है !
हम सब भविष्य के उस भवन की ईंटें है ! और, हम ही है वे किरणे जिनसे उस भविष्य के सूरज का जन्म होगा ! हम दर्शक नहीं, सृष्टा है !
और, इसलिए वह भविष्य का ही निर्माण नहीं, वर्तमान का ही निर्माण है ! वह हमारा ही निर्माण है ! मनुष्य स्वयं का ही सृजन करता है ! व्यक्ति ही समिष्ट की इकाई है ! उसके दुवारा ही विकास है और क्रांति है !
वह इकाई आप है !
इसलिए, मैं आपको पुकारना चाहता हूँ ! मैं आपको निद्रा से जगाना चाहता हूँ !
क्या आप नहीं देख रहे है कि आपका जीवन एक बिलकुल बेमानी, निरर्थक और ऊब देनेवाली घटना हो गया है ? जीवन ने सारा अर्थ और अभिप्राय खो दिया है ! यह स्वाभाविक ही है ! मनुष्य के भीतर प्रकाश न हो तो उसके जीवन में अर्थ नहीं हो सकता है !

Wednesday, February 8, 2012

भगवान् के दर्शन कैसे होते है ?

* यह 'दर्शन' शब्द भ्रामक है ! इससे ऐसा प्रतिध्वनित होता है कि जैसे भगवान् कोई व्यक्ति है, जिसका दर्शन होगा और ऐसे ही 'भगवान्' शब्द ही व्यक्ति भ्रम देता है ! भगवन कोई नहीं है, केवल भगवान् है ! व्यक्ति नहीं है, शक्ति है ! शक्ति का अनंत सागर है : चैतन्य का अनंत सागर है...वही सब रूपों में अभिव्यक्त हो रहा है ! वह भगवान् सृष्टा (Creater) की भांति अलग नहीं है....! वही है सृष्टि.......वही है सृजनात्मकता (Creativity) जीवन वही है ! 'अहम' (EGO) से घिरकर हम इस 'जीवन' (Life) से भिन्न होने का आभास कर लेते है ! वही प्रभु से हमारी दुरी है; यूँ वस्तुत: दुरी असंभव है ! अहम् से, 'मैं, से पैदा हुआ आभास ही दुरी है ! यह दुरी अज्ञान है : वस्तुत: दुरी नहीं है, अज्ञान ही दुरी है ! 'मैं' मिट जाये तो अनंत अपरिसीम सृजनात्मक जीवनशक्ति का अनुभव होता है........वही भगवान् है ! 'मैं' की शुन्यता पर जो अनुभव है, वही ' भगवान् ' का दर्शन है ! मैं क्या देख रहा हूँ कि 'मैं' कही भी नहीं है.......और जो सागर की लहरों में है वही मुझमें है' जो स्वयं बसंत में नयी फूटती कोपलो में है, वही मुझमे है, जो पतझर में गिरे पत्तो में है, वही मुझमें है...मैं विश्वसत्ता से कही भी टुटा और पृथक नहीं हूँ : उसमें हूँ, वही हूँ....यही अनुभव प्रभु--साक्षात् है !