Wednesday, August 24, 2011

वक्त

वक्त को जिसने नहीं समझा उसे मिटना पड़ा है,
बच गया तलवार से तो फूल से कटना पड़ा है,
क्यों न कितनी ही बड़ी हो, क्यों न कितनी ही कठिन हो,
हर नदी की राह से चट्टान को हटना पड़ा है,
उस सुबह से सन्धि कर लो,
हर किरन की मांग भर लो,
है जगा इन्सान तो मौसम बदलकर ही रहेगा।
जल गया है दीप तो अंधियार ढल कर ही रहेगा

Monday, August 22, 2011

नन्द गोपाल

झूलने मैं झूले मेरे नन्द गोपाल जी...
आज देवकी ने जनम दिया यशोदा नन्द लाल जी...
साईं संजीवन कहे सब जग को हार्दिक शुभ कामनाये दोस्तों 
लडू साईं बल गोपाल हो तेरा जनम दिन मुबारक सब संसार को...
हमे देना रख अपने नटखट गोपी गोपालो के संग ...
देदो न एक मुस्कान होठो पर ए मुरली धरा ..
हमको है इस दुनिया में सिर्फ एक तेरा सहारा....
जमन दिन गोपाल साईं जी का सब को मुबारक ....
जय राधे राधे कृष्ण कनैया मुरली बजैया...
साईं संजीवन परिवार की और से जनम अष्टमी की सब को शुभ कामनाये

Friday, August 19, 2011

रुद्राक्ष का औषधीय उपयोग

जय श्री कृष्ण,

श्री विनोद तिवारी जी, द्वारा लिखित लेख ----- मुझे तो अति सुन्दर एवं ज्ञान वर्धक लगा इसलिए आप सभी मित्रों के लिए भी ले आया ||
रुद्राक्ष का औषधीय उपयोग 
धार्मिक क्षेत्र में रुद्राक्ष अनादिकाल से ‘रुद्राक्ष माला’ के रूप में प्रचलित है और मंत्र सिद्धि के लिए इसका प्रयोग होते देखा गया है। तांत्रिक प्रयोग और सिद्धियों में भी इसका प्रयोग होता है। हमारे शरीर रूपी यंत्र को सुसंचालित करने के लिए भी रुद्राक्ष उपयोगी है। धर्मशास्त्र में रुद्राक्ष अपने बहुउपयोग के कारण शिवतुल्य मंगलकारी माना गया है। चिकित्साशास्त्र में भी रुद्राक्ष के चमत्कारी उपयोग भरे है। 
रुद्राक्ष श्वेत, लाल, पीत और कृष्ण इन चार रंगों में प्राप्त होता है। यह एकमुखी से चौदहमुखी तक प्राप्त होता है। विश्व में इसकी १२३ जातियां उपलब्ध है। भारत में २५ जातियां पाई जाती है।
भारत में यह हिमालय के पर्वतीय क्षेत्र, बंगाल, बिहार, असम, मध्यप्रदेश और विदेशों में नेपाल, मलेशिया, इंडोनेशिया, चीन आदि में मिलता है।
यह गुणों में गुरु और स्निन्ध, स्वाद में मधुर और वीर्य में शीतवीर्य होता है। रुद्राक्ष वेदनाशामक, ज्वरशामक, अंगों को सुद़ृढ करने वाला, श्वासनलिकाओं के अवरोध को दूर करने वाला, विषनाशक और उदर कृमिनाशक है। यह एक उत्तम त्रिदोष शामक है।
रुद्राक्ष वातनाशक तथा कफनाशक है। अनेक रोगों में यह बहुत उपयोगी है। इसके कुछ बहुपरीक्षित प्रयोग इस प्रकार है।
बहुपरीक्षितबहुउपयोगी रुद्राक्ष के प्रयोगः
* शिरशूलः सिर के दर्द में इसे पानी में घिसकर माथे पर चंदन की तरह लेप करने से तुरंत फायदा होता है।
* बालकों का श्वासकष्टः बच्चों में कफ का अवरोध होने पर रुद्राक्ष का चूर्ण रत्ती की मात्रा में शहद में मिलाकर बारबार चटाने से आसानी से कफ निकलता है और श्वासकष्ट भी ठीक हो जाता है।
* अतिसारः अतिसार रोग में इसके फल को पानी में घिसकर पिलाने से हितकारी है।
* मसूरिका व रोमान्तिकाः मसूरिका व रोमान्तिका में प्रसार की स्थिति में रुद्राक्ष की माला धारण करने से इनसे बचाव रहता है और रोग की स्थिति में भी इनके दुश्परिणाम नहीं होते।
* मानसिक रोगः रुद्राक्ष मानसिक रोग, अपस्मार (मिर्गी), आक्षेपक, अपतंत्रक, अनिद्रा आदि में विशेष लाभकारी होता है। इनमें इसकी माला धारण करने से लाभ होता है।
* वृक्करोगः गुर्दे के रोगों में, हिपाटेमेगाली (लीवरवृद्धि) में और कामला (पीलिया) में रुद्राक्ष के पानी का सेवन लाभकारी होता है।
* उच्च रक्तचापः हाई ब्लड प्रेशर में एक रुद्राक्ष को एक गिलास पानी में भिगों दें और सुबह इसका जल पीने को देवें। यह प्रयोग निरंतर करते रहें। हाई बीपी में रुद्राक्ष की माला का धारण भी काफी असरकारी होता है।
* अन्य रोगों में ए़ड्‌स की प्रारंभिक अवस्था में, क्षय रोग में, रक्तपित्त, कासश्वास, प्रमेह रोग में भी यह अतीव उपयोगी है। यह परम रसायन है और अनेक रोगों से बचाव भी करता है।

रुद्राक्ष धारण का चिकित्सकीय महत्वः
शरीर में रुद्राक्ष धारण करने से रोमकूप के माध्यम से रक्त की कोशिकाओं द्वारा रक्तवाहिनी, शिरा एवं धमनियों पर इसका प्रभाव होता है। 
रुद्राक्ष की माला गले में पहनने से और इसके हृदय प्रदेश पर लगे रहने से संस्पर्श द्वारा यह हृदय को बल देती है, इससे रक्त की शुद्धि होती है और रक्त परिभ्रमण में दोष उत्पन्न होने पर इसके प्रभाव से नष्ट हो जाते है। इससे रक्तचाप सामान्य बना रहता है। यह ब़़ढे हुए रक्तचाप को नियंत्रित करता है। इसकी १०८ की माला या इसके पांच नग या केवल एक रुद्राक्ष के धारण से भी लाभ होता है। औषधी में इसके फल, बीज, भस्म, छाल व पत्तों का प्रयोग होता है। रुद्राक्ष के पत्तों का रस जठराग्नि को प्रदीप्त करता है, यह पौष्टिक तथा कामोद्धीपक होता है।

|| जय श्री कृष्ण ||

बालकों का श्वासकष्

* बालकों का श्वासकष्टः बच्चों में कफ का अवरोध होने पर रुद्राक्ष का चूर्ण रत्ती की मात्रा में शहद में मिलाकर बारबार चटाने से आसानी से कफ निकलता है और श्वासकष्ट भी ठीक हो जाता है।
* अतिसारः अतिसार रोग में इसके फल को पानी में घिसकर पिलाने से हितकारी है।
* मसूरिका व रोमान्तिकाः मसूरिका व रोमान्तिका में प्रसार की स्थिति में रुद्राक्ष की माला धारण करने से इनसे बचाव रहता है और रोग की स्थिति में भी इनके दुश्परिणाम नहीं होते।
* मानसिक रोगः रुद्राक्ष मानसिक रोग, अपस्मार (मिर्गी), आक्षेपक, अपतंत्रक, अनिद्रा आदि में विशेष लाभकारी होता है। इनमें इसकी माला धारण करने से लाभ होता है।
* वृक्करोगः गुर्दे के रोगों में, हिपाटेमेगाली (लीवरवृद्धि) में और कामला (पीलिया) में रुद्राक्ष के पानी का सेवन लाभकारी होता है।
* उच्च रक्तचापः हाई ब्लड प्रेशर में एक रुद्राक्ष को एक गिलास पानी में भिगों दें और सुबह इसका जल पीने को देवें। यह प्रयोग निरंतर करते रहें। हाई बीपी में रुद्राक्ष की माला का धारण भी काफी असरकारी होता है।
* अन्य रोगों में ए़ड्‌स की प्रारंभिक अवस्था में, क्षय रोग में, रक्तपित्त, कासश्वास, प्रमेह रोग में भी यह अतीव उपयोगी है। यह परम रसायन है और अनेक रोगों से बचाव भी करता है।

रुद्राक्ष धारण का चिकित्सकीय महत्वः
शरीर में रुद्राक्ष धारण करने से रोमकूप के माध्यम से रक्त की कोशिकाओं द्वारा रक्तवाहिनी, शिरा एवं धमनियों पर इसका प्रभाव होता है। 
रुद्राक्ष की माला गले में पहनने से और इसके हृदय प्रदेश पर लगे रहने से संस्पर्श द्वारा यह हृदय को बल देती है, इससे रक्त की शुद्धि होती है और रक्त परिभ्रमण में दोष उत्पन्न होने पर इसके प्रभाव से नष्ट हो जाते है। इससे रक्तचाप सामान्य बना रहता है। यह ब़़ढे हुए रक्तचाप को नियंत्रित करता है। इसकी १०८ की माला या इसके पांच नग या केवल एक रुद्राक्ष के धारण से भी लाभ होता है। औषधी में इसके फल, बीज, भस्म, छाल व पत्तों का प्रयोग होता है। रुद्राक्ष के पत्तों का रस जठराग्नि को प्रदीप्त करता है, यह पौष्टिक तथा कामोद्धीपक होता है।

|| जय श्री कृष्ण ||
* बालकों का श्वासकष्टः बच्चों में कफ का अवरोध होने पर रुद्राक्ष का चूर्ण रत्ती की मात्रा में शहद में मिलाकर बारबार चटाने से आसानी से कफ निकलता है और श्वासकष्ट भी ठीक हो जाता है।
* अतिसारः अतिसार रोग में इसके फल को पानी में घिसकर पिलाने से हितकारी है।
* मसूरिका व रोमान्तिकाः मसूरिका व रोमान्तिका में प्रसार की स्थिति में रुद्राक्ष की माला धारण करने से इनसे बचाव रहता है और रोग की स्थिति में भी इनके दुश्परिणाम नहीं होते।
* मानसिक रोगः रुद्राक्ष मानसिक रोग, अपस्मार (मिर्गी), आक्षेपक, अपतंत्रक, अनिद्रा आदि में विशेष लाभकारी होता है। इनमें इसकी माला धारण करने से लाभ होता है।
* वृक्करोगः गुर्दे के रोगों में, हिपाटेमेगाली (लीवरवृद्धि) में और कामला (पीलिया) में रुद्राक्ष के पानी का सेवन लाभकारी होता है।
* उच्च रक्तचापः हाई ब्लड प्रेशर में एक रुद्राक्ष को एक गिलास पानी में भिगों दें और सुबह इसका जल पीने को देवें। यह प्रयोग निरंतर करते रहें। हाई बीपी में रुद्राक्ष की माला का धारण भी काफी असरकारी होता है।
* अन्य रोगों में ए़ड्‌स की प्रारंभिक अवस्था में, क्षय रोग में, रक्तपित्त, कासश्वास, प्रमेह रोग में भी यह अतीव उपयोगी है। यह परम रसायन है और अनेक रोगों से बचाव भी करता है।

रुद्राक्ष धारण का चिकित्सकीय महत्वः
शरीर में रुद्राक्ष धारण करने से रोमकूप के माध्यम से रक्त की कोशिकाओं द्वारा रक्तवाहिनी, शिरा एवं धमनियों पर इसका प्रभाव होता है। 
रुद्राक्ष की माला गले में पहनने से और इसके हृदय प्रदेश पर लगे रहने से संस्पर्श द्वारा यह हृदय को बल देती है, इससे रक्त की शुद्धि होती है और रक्त परिभ्रमण में दोष उत्पन्न होने पर इसके प्रभाव से नष्ट हो जाते है। इससे रक्तचाप सामान्य बना रहता है। यह ब़़ढे हुए रक्तचाप को नियंत्रित करता है। इसकी १०८ की माला या इसके पांच नग या केवल एक रुद्राक्ष के धारण से भी लाभ होता है। औषधी में इसके फल, बीज, भस्म, छाल व पत्तों का प्रयोग होता है। रुद्राक्ष के पत्तों का रस जठराग्नि को प्रदीप्त करता है, यह पौष्टिक तथा कामोद्धीपक होता है।

|| जय श्री कृष्ण ||

Wednesday, August 17, 2011

Human life is beset with ups and downs, joys and sorrows. These
experiences are intended to serve as guideposts for man. Life would be
bland without trials and tribulations. Problems in life bring out the
human values from within man. You cannot get the juice of the
sugarcane without crushing it; you cannot enhance the brilliance of a
diamond without cutting it and making many facets. One must shed
pettiness and develop broad-mindedness through the cultivation of
love. Only when you endure various difficulties, can you experience
the sweet bliss of Self-realization. Hence, difficulties must be
welcomed and overcome to experience Divinity.||Jai Sai Ram||
Human life is beset with ups and downs, joys and sorrows. These
experiences are intended to serve as guideposts for man. Life would be
bland without trials and tribulations. Problems in life bring out the
human values from within man. You cannot get the juice of the
sugarcane without crushing it; you cannot enhance the brilliance of a
diamond without cutting it and making many facets. One must shed
pettiness and develop broad-mindedness through the cultivation of
love. Only when you endure various difficulties, can you experience
the sweet bliss of Self-realization. Hence, difficulties must be
welcomed and overcome to experience Divinity.||Jai Sai Ram||

धुल हमें मिलती रहे

बड़े किस्मत बाले हे वो जिन्हें तेरी भक्ति मिली ,जो हमेशा तेरे नाम का
गुणगान करने का सतत प्रयास करते रहते हे और तेरी भक्ति करने से अपने जीवन
को धन्य मानते हे,.बाबा तेरी भक्ति .तो दूर तेरा नाम लेने मात्र से ही
लोगो का जीवन सफल हो जाता हे
बापू बस इतनी सी फ़रियाद हे मेरी
सदा आपके चरणों की धुल हमें मिलती रहे ..............

साईं का दर्शन

हे आँख वो जो साईं का दर्शन किया करे
हे शीश वो जो साईं के चरणों में बंदन किया करे
मुख वो हे जो साईं नाम का सुमरण किया करे
हीरे मोती से नहीं हे शोभा हे हाथ की
हाथ वो हे जो साईं का पूजन किया करे...
ॐ साईं आसाराम

मेरे गुरु देवा

भटका हुआ मेरा मन था कोई
मिल ना रहा था सहारा
लहरों से लड़ती हुई नाव को
जैसे मिल ना रहा हो किनारा, मिल ना रहा हो किनारा
उस लड़खड़ाती हुई नाव को जो
............किसी ने किनारा दिखाया
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है
मैं जब से शरण तेरी आया, मेरे गुरु देवा ...

कैसे आऊं मै मोटेरा

ॐ गुरु राम
कैसे आऊं मै मोटेरा  में बापू मुझको अब तुम ही बतला दो
कोई तो रास्ता अब निकालोजो जल्दी से तेरे दर पे लाये
बहुत तरसी है आंखे ये अब तककब देखेंगी ये वो नजारा
 जब मुझको भी जन्नत के दर्शनतेरी मोटेरा में जा कर होंगे
मैंने हर पल तुझको ही चाहाफिर क्यूँ न सुना तुमने बाबा
क्या एक बेटे को अपने पिता सेमिलने को तड़पते ही रहना है
खबर तो तुम्हे भी ये होगीकोई रोता है तुम्हे याद कर के

Tuesday, August 16, 2011

BAKSHISH

OM GURU OM

YE KYA KAM HAI KI TUNE MUJE APNAYA HAI MAI TO KABIL NA THI BAPU TERI ISS BAKSHISH KE

TERI IK NAJAR HI KAFI HAI DUNIA KI OON LAKHO NAJRO SE JO HARPAL MUJE TUM APNI NIGAH ME HI RAKHTE HO

MERA YE HATH JABSE TUMNE THAAM LIYA BAPU MAI TO ZAMANE KI THOKARO SE BE AAB BACHNE LAGI

MERI TAKDEER KI LAKEERE BE NA KUCH BEEGAD SAKI JABSE MAI TERI SHARAN ME AA GAE BAPU

TUJSE JO JUD GAYA MERA RISHTA BAPU DUNIA KE SAB NAATE TUTE BE TO KOI GAM NAHI AAB

YE KYA KAM HAI KI TUNE MUJE APNAYA HAI MAI TO KABIL NA THI BAPU TERI ISS BAKSHISH KE...

Jai Shri Ram

!! Jai Shri Ram !!
Go into the dept of a Word. See his hidden meaning.
The quieter he becomes. A gentle man is ashamed that his words are better than his deeds.
Yet not only better than his deeds; but wiser than his meaning and better than his intentions.               

शब्दो नित्य: शब्दम ब्रह्मम !!!!
Atman, or the True "Self" - Swami Vivekananda
Here I stand and if I shut my eyes, and try to conceive my existence, "I", "I", "I", what is the idea before me? The idea of a body. Am I, then, nothing but a combination of material substances? The Vedas declare, "No". I am a spirit living in a body. I am not the body. The body will die, but I shall not die. Here am I in this body; it will fall, but I shall go on living. I had also a past. The soul was not created, for creation means a combination, which means a certain future dissolution. If then the soul was created, it must die.
Loka samasta sughino Bhavantu
!! Jai Shri Ram !!

Monday, August 15, 2011

तिलक

तिलक बिना लगाएं हिन्दू मान्यताओं के अनुसार कोई भी पूजा-प्रार्थना नहीं होती। सूने मस्तक को अशुभ माना जाता है। तिलक लगाते समय सिर पर हाथ रखना भी हमारी एक परंपरा है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इसका कारण क्या है?

दरअसल धर्म शास्त्रों के अनुसार सूने मस्तक को अशुभ और असुरक्षित माना जाता है। तिलक लगाने के लिए अनामिका अंगुली शांति प्रदान करती है। मध्यमा अंगुली मनुष्य की आयु वृद्धि करती है। अंगूठा प्रभाव और ख्याति तथा आरोग्य प्रदान कराता है। इसीलिए राजतिलक अथवा विजय तिलक अंगूठे से ही करने की परंपरा रही है। तर्जनी मोक्ष देने वाली अंगुली है। ज्योतिष के अनुसार अनामिका तथा अंगूठा तिलक करने में सदा शुभ माने गए हैं। अनामिका सूर्य पर्वत की अधिष्ठाता अंगुली है। यह अंगुली सूर्य का प्रतिनिधित्व करती है, जिसका तात्पर्य यही है कि सूर्य के समान, दृढ़ता, तेजस्वी, प्रभाव, सम्मान, सूर्य जैसी निष्ठा-प्रतिष्ठा बनी रहे।

दूसरा अंगूठा है जो हाथ में शुक्र क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है। शुक्र ग्रह जीवन शक्ति का प्रतीक है। जीवन में सौम्यता, सुख-साधन तथा काम-शक्ति देने वाला शुक्र ही संसार का रचयिता है। माना जाता है कि जब अंगुली या अंगूठे से तिलक किया जाता है तो आज्ञा चक्र के साथ ही सहस्त्रार्थ चक्र पर ऊर्जा का प्रवाह होता है। सकारात्मक ऊर्जा हमारे शीर्ष चक्र पर एकत्र हो साथ ही हमारे विचार सकारात्मक हो व कार्यसिद्ध हो। इसीलिए तिलक लगावाते समय सिर पर हाथ जरूर रखना चाहिए

ऋग्वेद संहिता:----

॥॥ अथ प्रथमं मण्डलम् ॥॥ {ऋषि - मधुछन्दा वैश्वामित्र | देवता -अग्नि | छंद - गायत्री }

१, ॐ अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम् । होतारं रत्नधातमम् ॥१॥
अर्थ:-हे अग्निदेव हम आपके उस रूप कि स्तुति करते है, जिस रूप से आप, मन्त्र वाचक ब्राह्मणों के द्वारा, यजमान के निमित किए जाने वाले यज्ञ से प्रशन्न होकर, होतारं अर्थात-होता, अथवा यजमान को, रत्नों ( धन-धान्य ) से भर देते हैं | हमारा आपको कोटि-कोटि नमन ॥१॥

२, अग्निः पूर्वेभिर्ऋषिभिरीड्यो नूतनैरुत् । स देवाँ एह वक्षति ॥२॥
अर्थ:- आप वही अग्नि देव हैं, जो पूर्व काल में भृगु, अंगिरा आदि ऋषियों द्वारा प्रशंसित हैं | और आधुनिक काल में भी वेदज्ञ विद्वानों द्वारा स्तुत्य हैं, अत: आपसे मेरी प्रार्थना है,कि मेरे सभी मित्रों, शत्रुओं, यजमानों और सगे-सम्बन्धियों के साथ विश्व कल्याण के निमित मेरे सुबह के यज्ञ में सभी देवों को बुलाएँ ॥२॥

३, अग्निना रयिमश्नवत् पोषमेव दिवेदिवे । यशसं वीरवत्तमम् ॥३॥
अर्थ:- हे अग्नि देव, आप सदा से ही हम ब्राह्मणों द्वारा स्तुति किए जाने पर, हमारे यजमानों, सगे-सम्बन्धियों, शत्रु-मित्र एवं सभी इष्ट मित्रों को, प्रतिदिन विवर्धमान( नित्य बढ़ने वाला ) धन, यश, पुत्र-पौत्र (कुल में वीर पुरुषों) को प्रदान करते आये हैं | अत: आज भी हम अपने उपरोक्त सभी लोगों के लिए इसी तरह के कल्याण कि याचना करते हैं, आप हमारी प्रार्थना सुनें ॥३॥

आज भी हम हमारे यहाँ यज्ञ, हवन, पूजा-पाठ करने किसी ब्राह्मण को बुलाते हैं, तो वो ब्राह्मण इन्हीं मन्त्रों को हमारे लिए उच्चारित करता है | जिन्हें न हम समझते हैं, और ना ही सभी कराने वाले ब्राह्मण |

अगर हम इन्हें समझ पाए तो कितनी ऊँची बात एक साधारण ब्राह्मण हमारे लिए बोलकर जाता है, जो शायद हम खुद हमारे लिए कभी नहीं बोल पाते |

एक ब्राह्मण में दुर्गुण कितने ही हो, हमारे लिए वो कल्याणकारी ही होता है ||||

Wednesday, August 10, 2011

स्त्री आदरणीय है

स्त्री आदरणीय है
संसार में हिन्दू धर्म ही ऐसा है जो ईश्वर या परमात्मा को स्त्रीवाचक शब्दों जैसे सरस्वती माता, दुर्गा माता, काली मैया, लक्ष्मी माता से भी संबोधित करता है । वही हमारा पिता है, वही हमारी माता है (त्वमेव माता च पिता त्वमेव) । हम कहते हैं राधे-कृष्ण, सीता-राम अर्थात् स्त्रीवाचक शब्द का प्रयोग पहले । भारतभूमि भारतमाता है । पशुओं में भी गाय गो माता है किन्तु बैल पिता नहीं है । हिन्दुओं में ‘ओम् जय जगदीश हरे’ या ‘ॐ नम: शिवाय’ का जितना उद्घोष होता है उतना ही ‘जय माता की’ का भी । स्त्रीत्व को अत्यधिक आदर प्रदान करना हिन्दू जीवन पद्धति के महत्त्वपूर्ण मूल्यों में से एक है । कहा गया है :-

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता: ।

यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया: ।

जहां पर स्त्रियों की पूजा होती है, वहां देवता रमते हैं । जहाँ उनकी पूजा नहीं होती, वहाँ सब काम निष्फल होते हैं ।

शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम् ।

न शोचन्ति तु यत्रैता वर्धते तद्धि सर्वदा ।

जिस कुल में स्त्रियाँ दु:खी रहती हैं, वह जल्दी ही नष्ट हो जाता है । जहां वे दु:खी नहीं रहतीं, उस कुल की वृद्धि होती है ।

Sunday, August 7, 2011

आज के संदर्भ में

तुलसीदासः आज के संदर्भ में‘ - पुस्तक में युगेश्वर जी ने उचित ही कहा है कि राष्ट्र की भावात्मक एकता के लिए जिस उदात्त चरित्र की आवश्यकता है, वह रामकथा में है। मानस एक ऐसा वाग्द्वार है जहाँ समस्त भारतीय साधना और ज्ञान परम्परा प्रत्यक्ष दीख पडती है। दूसरी ओर देशकाल से परेशान, दुःखी और टूटे मनों का सहारा तथा संदेश देने की अद्भुत क्षमता है। आज भी करोडों मनों का यह सहारा है।
’रामचरितमानस‘ के संदेश को केवल भारत तक सीमित स्वीकृत करना इस महान् ग्रंथ के साथ अन्याय होगा। ’रामचरितमानस‘ युगवाणी है। विश्व का एक ऐसा विशिष्ट महाकाव्य जो आधुनिक काल में भी ऊर्ध्वगामी जीवनदृष्टि एवं व्यवहारधर्म तथा विश्वधर्म का पैगाम देता है। ’रामचरितमानस‘ अनुभवजन्य ज्ञान का ’अमरकोश‘ है।
आज का युग विज्ञान का युग है। विज्ञान ’क्या है‘ यह तो बता सकता है, यह किन्तु ’क्या होना चाहिए‘ और क्यों होना चाहिए‘ इस प्रकार के प्रश्नों को नहीं छूता। मानवजीवन के मूल्यों का विचार न कभी विज्ञान ने किया है न करेगा। विज्ञान केवल ज्ञेय वस्तु तक ही सीमित है।
वैज्ञानिक प्रगति ने आज के मानव जीवन को ’सुखी‘ बनाया है, किन्तु ’प्रसन्न‘ बनाया है ? खाने-पीने, रहने-सोने, उठने-बैठने जैसी साधारण-सी बातों को लेकर समस्याएँ पैदा हो रही हैं। भौतिकवाद ने मनुष्य को आत्मकेन्द्री बनाया है। त्याग के स्थान पर ’परिग्रह‘ का महत्त्व अत्र-तत्र-सर्वत्र दृष्टिगत होता है। इसका मूल कारण है अध्यात्म की विस्मृति अर्थात् मानवजीवन के शाश्वत मूल्यों की उपेक्षा। कवि भर्तृहरि के शब्दों में कहें तो मनुष्य भोगों को नहीं भोग रहा, भोग मनुष्यों का उपभोग कर रहे हैं। इस विकट परिस्थितियों का उपाय है निर्मल, तपोद्दीप्त एवं त्यागपूर्ण जीवनदृष्टि। आज ’कामराज्य‘, ’दामराज्य‘ और ’जामराज्य‘ (मद्यपान) ने मनुष्य जीवन को बुरी तरह घेर लिया है। विश्वबंधुत्व की भावना की विस्मृति विश्व को भयग्रस्त बना रही है।
’तुलसी के हिय हेरि‘ में तुलसी-साहित्य के मर्मज्ञ स्व. विष्णुकान्त शास्त्री जी ने ’आधुनिकता की चुनौती और तुलसीदास‘ शीर्षक अध्याय में कहा है कि तुलसीदास की विचारधारा का विपुलांश आज भी वरणीय है। श्रीराम सगुण या निर्गुण ब्रह्म, अवतार, विश्वरूप, चराचर व्यक्त जगत् या चाम मूल्यों की समष्टि और स्रोत-उन का जो भी रूप आप को ग्राह्य हो) के प्रति समर्पित, सेवाप्रधान, परहित निरत, आधि-व्याधि-उपाधि रहित जीवन, मन, वाणी और कर्म की एकता, उदार, परमत सहिष्णु, सत्यनिष्ठ, समन्वयी दृष्टि, अन्याय के प्रतिरोध के लिए वज्र - कठोर, प्रेम-करुणा के लिए कुसुम कोमल चित्त, गिरे हुए को उठाने और आगे बढने की प्रेरणा और आश्वासन, भोग की तुलना में तप को प्रधानता देने वाला विवेकपूर्ण संयत आचरण, दारिद्रय मुक्त, सुखी, सुशिक्षित, समृद्ध समतायुक्त समाज, साधुमत और लोकमत का समादर करनेवाला प्रजाहितैषी शासन-संक्षेप में यही आदर्श प्रस्तुत किया है, तुलसी की ’मंगल करनि, कलिमल हरनि‘-वाणी ने। क्या आधुनिकता इस को खारिज कर सकती है