Saturday, July 30, 2011

आँखे बंद रहती है

मेरा हर एक आँसू बापू तुझे ही पुकारे
मेरी पहुँच तुझ तक सिर्फ आँसुओं के सहारे
जब आप की याद सांई सही न जाए
आप को सामने न पा कर दिल मेरा घबराए
तब ज़ुबा, हाथ , पांव सब बेबस होते है
इन्ही का काम बापू आँसू कर देते है
ये आप तक तो नहीं पहुँते पर फिर भी
इस तङप को कुछ शांत कर देते है
जब तक ये बहते है सांई आँखे बंद रहती है
बंद आँखे ही बापू मुझे आप से मिलाती है
बह बह कर बापू जब ये आंसू थक जाते है......,....
कुछ समय सांस लेने खुद ही रूक जाते है,
पर आप की याद कभी नहीं थकती है,
बिना रूके सदा मेरी सांसों के साथ ही चलती है
मुझे मंज़ूर है ये सौदा आप यूँ ही याद आते रहिए
आँसूओं के सहारे ही सही मेरे नैनों में समाते रहिए

Thursday, July 28, 2011

साधू कौन??


सामान्यतया भारत देश मे हर लाल कपडे पहने व्यक्ति को साधु कहा जाता है, दाढी बढी हो, लगोंट लगाकर घूम रहे हों, अन्य कोई विचित्र वेष हो जटाधारी हो या त्रिपुण्ड या उर्ध्वपुण्ड धारण किये हो साधु महात्मा बाबा जी सन्त आदि शब्दों से विभूषित हो जाता है पर क्या वो साधु हैं?किसको साधु कहें किसको न कहें कहा गया है! ना जाने किस वेश मे नारायण मिल जाये पर आखिर कैसे पहचान हो कि साधू है या असाधु!!

साधु वह है जो अन्तः स्वरूप बाह्यस्वरूप के सापेक्ष नहीं होते! वे किसी भी बाह्या मे हो सकतें हैं! लेकिन उनका अन्तःकरण अमित बोध वाला होता है! साधु ईश्वर के प्रति जिज्ञासा रखने वाला होता है! साधु शीलवान है अर्थात वह शील स्वभाव सदा प्रसन्न रहने वाला होता है!! साधु ईश्वर के द्वारा प्रदत्त प्रारब्ध के अनुसार प्राप्त वस्तुओं मे ही सन्तुष्ट रहने वाला श्री हरि के अहैतुकी कॄपा का स्मरण करके सदा आनन्द मग्न रहता है!! जो इन लक्षणों से वियुक्त हो कर आशा तॄष्णा आदि के चक्कर मे पड कर ईश्वर को भूल जाता है वह सांसारिक आध्यात्मिक सम्पदा से रहित अकिञ्चन धन दौलत पुत्र स्त्री आदि मकान घर गाडी आदि भौतिक पदार्थों मे आसक्त हो व्याकुल हो जाता है! इसलिये ईश्वर से दूर हो जाता है! वही सांसारिक है!! वैराग्य शतक मे भतृहरी ने कहा है! -

आशानाम नदी मनोरथजला तृष्णातरंगाकुला रागग्राहवती वितर्कविहगा धैर्यद्रुमध्वन्सिनी!!
मोहावर्तसुदुस्तरातिगहना प्रोतुंगचिन्तातटी तस्या पारगता विशुद्ध मनसो नन्दति योगीश्वराः!!


भर्तृहरि ने व्यक्ति की आशाओं की तुलना नदी से कर के बहुत सुन्दर उदाहरण दिया है कहते हैं कि आशा नामक एक नदी जो मनोरथ के जल से परिपूर्ण है जिसमे तृष्णा(लालच) रुपी तरंग से व्याकुल रहती है! उसमे राग(प्रेम) रूपी ग्राह का निवास है! तर्क वितर्क रूपी जलीय पक्षी उसमे निवास करते हैं उसमे उठनेवाली तृष्णा रूपी तरंग उसके किनारों पर स्थित धैर्यरूपी वॄक्ष को उखाड कर गिरा देते हैं! मोहरूपी भंवर इस नदी मे है और ये नदी बहुत ही गहरी है! इस नदी के चिन्ता रूपी तट इतने उंचे हैं कि उसको पार करना मुश्किल हो जाता है! लेकिन उसको कौन पार कर सकता है तो वो योगीश्वर इसको पार कर सकते हैं जो विशुद्ध मन वाले होते है! जिसको षड उर्मियां नही सताती जिसके कोई इच्छा नही जिसके कोई संकल्प नही ऐसे लोग सहज भाव से आशा नाम नदी को पार कर आनन्द या परम सुख प्राप्त कर लेते हैं इसके विपरीत जो इसमे फ़ंसा रहगया वो पीडित होता है! ऐसे पीडित को कभी साधू नही कहा जाता ऐसे तो सामान्य सांसारिक लोग होते हैं जिनके मन मे हो कि वो धन स्त्री ब्रह्मलोक, राजऐश्वर्य की चाहत होती है!!

अतः सद्भक्त हो, सबका भला चाहे! किसी से प्रेम, ईष्या या द्वेष न हो, सम्पत्ति का मोह, पारिवारिक मोह न हो जिसके लिये माटी और सोने मे अन्तर न हो! वह साधु है चाहे वो कैसा भी वस्त्र पहने या उसका कोई भी रूप मे क्यों न हो!!

Wednesday, July 27, 2011

कृष्ण प्यारे

सुनो टेर मेरी, अहो कृष्ण प्यारे
कनक पाट खोलो, हैं द्वारे पे आये
सुना है पतितों को पावन बनाते
सुना है कि दुखियों को हृदय से लगाते
यही आस ले दासी द्वारे पे आई
सुनो टेर मेरी, अहो कृष्ण प्यारे
कनक पाट खोलो, हैं द्वारे पे आये
सुना हमनें मुरली की है तान प्यारी
सुना है कि मोहनी मूरत तुम्हारी
दरश दीजिये हमको बांके बिहारी
सुनो टेर मेरी, अहो कृष्ण प्यारे
कनक पाट खोलो, हैं द्वारे पे आये
सुना है कि गोपिन से माखन चुराते
सुना है कि नित बन में रास रचाते
यही ढूंढते हैं ये लोचन हमारे
सुनो टेर मेरी, अहो कृष्ण प्यारे
कनक पाट खोलो, हैं द्वारे पे आये

विचार किया

क्या आपने कभी विचार किया है कि राह चलते कोई वाहन टक्कर देकर किसी गाय को घायल कर देता है तो उस गाय का क्या होगा ? अतीत में जो गाय हमारे घर की सर्वे-सर्वा थी आज वह तड़प-तड़प् कर मरने को लाचार है। आये दिन देखते हैं कि गोवंश जगह-जगह दुर्घटनाग्रस्त कर दिया जाता है। लोग एकत्रित होते हैं और तमाशा देखते हैं लेकिन पूरे देश में 10-20 स्थानों को छोड़कर कोई ऐसी व्यवस्था नही है जहाँ ऐसे गोवंश का इलाज किया जा सके एवं जब तक चलने फिरने योग्य न हो तब तक उसकी सेवा की जा सके। हमें महीने में तीन-चार बार ऐसी दुर्घटनाओं से रूबरू होना पड़ता है। आज ही शाम को पाँच बजे एक रोडवेज की बस ने गाय को टक्कर देकर बुरी तरह जख्मी कर दिया। जालोर में उसकी सेवा हेतु कोई व्यवस्था नहीं होने से गाड़ी में डालकर 150 किमी दूर श्री गोधाम पथमेड़ा भेजना पड़ता है। घायल अवस्था में 5 घण्टें का दर्द और पीड़ा भरा सफर, कैसे सहन कर पाती है गोमाता वो ही जाने। सांय 7 बजे जालोर से रवाना की गई गाड़ी अब पहुँचने वाली है श्री गोधाम पथमेड़ा।पूरे देश में गोसेवा के क्षेत्र में ऐसे करीब 15000 केन्द्रों की अंवश्यकता है।
फेस बुक के माध्यम से देश के धर्मातमाओं तक यह अपील पहुँचाना चाहता हूँ कि वे ऐसे केन्द्रों की स्थापना का पुण्य कार्य करे। देश के साधु समाज से अपील करता हूँ कि वे ऐसे केन्द्रों को चलाने में आगे आयें।

धर्म

सनातन धर्म क्या है?
‘‘कृत्य च प्रति कर्तव्यम् ऐश धर्मः सनातनः’’
जिस किसी ने भी हमारे प्रति उपकार किया है उस उपकारी के प्रति सदा-सर्वदा हृदय से कृतघ्न रहना यही है सनातन धर्म। इस परिभाषा मंे हमारा सम्पूर्ण सनातन धर्म आ गया।
गाय के मनुष्य के ऊपर सबसे अधिक उपकार है। अतः हमें गोमाता के उपकार को कभी नहीं भूलना चाहिये

Monday, July 25, 2011

तेरा नाम

ह्रदय से जपूँ तेरा नाम~
ब्रम्हानंद हे सुखधाम~
पूर्ण रूप साईं निष्काम~

मेरे मन में करना विश्राम~
अपने भक्तों का तूं रखवाला~आनन्द का है तूं धाम~
तेरी शरण में मैं हूँ आयI ,निज चरणों में देदों स्थान~

Saturday, July 23, 2011

समर्थ है

जाऊ न मै किसी मदिर में,
न जाऊ किसी के द्वार,
गुरु जब मेरा समर्थ है,
गुरु है मेरा पालनहार,मै भिखारी गुरु के आगे,
दया की भीख मांगता हूँ,
भीख के एक टुकड़े से,
भरपेट जी लेता हूँ,
मेरा स्वर्ग है गुरुद्वार,
गुरु है मेरा पालनहार,गंगाजल न पियूँ गुरु के,



चरण धो धो कर पीयू,
चरण धुली को देह में लगाकर,
जन्मो के पाप मिटाॐ,
इसी से होगा मेरा उदार,
गुरु है मेरा पालनहार,
बापू के जैसा न कोई सहारा देखा,
बापू के भक्तों जैसा न कोई प्यारा देखा,
कहीं और जाने की तमन्ना भी क्यूँ हो?
जब मोटेरा में ही जन्नत का नज़ारा देखा 

omom

जब आप अपनी खुशी के बारे में सोचते हैं, दूसरों को खुशियां देने के विषय में भी सोचें| इसका अर्थ यह नहीं है कि आप् संसार के लिए सब कुछ छोड दें|
यह असंभव है|लेकिन तुम्हें दूसरों के लिए सोचना अवश्य चाहिए|
बापू तेरी लीला कभी समझ ना पाऊ मैं तेरे चरणों में सदा शीश झुकाओ मैं

Wednesday, July 20, 2011

चाणक्य की सीख.................

चाणक्य की सीख.................

चाणक्य एक जंगल में झोपड़ी बनाकर रहते थे। वहां अनेक लोग उनसे परामर्श और ज्ञान प्राप्त करने के लिए आते थे। जिस जंगल में वह रहते थे, वह पत्थरों और कंटीली झाडि़यों से भरा था। चूंकि उस समय प्राय: नंगे पैर रहने का ही चलन था, इसलिए उनके निवास तक पहुंचने में लोगों को अनेक कष्टों का सामना करना पड़ता था। वहां पहुंचते-पहुंचते लोगों के पांव लहूलुहान हो जाते थे।

एक दिन कुछ लोग उस मार्ग से बेहद परेशानियों का सामना कर चाणक्य तक पहुंचे। एक व्यक्ति उनसे निवेदन करते हुए बोला, ‘आपके पास पहुंचने में हम लोगों को बहुत कष्ट हुआ। आप महाराज से कहकर यहां की जमीन को चमड़े से ढकवाने की व्यवस्था करा दें। इससे लोगों को आराम होगा।’ उसकी बात सुनकर चाणक्य मुस्कराते हुए बोले, ‘महाशय, केवल यहीं चमड़ा बिछाने से समस्या हल नहीं होगी। कंटीले व पथरीले पथ तो इस विश्व में अनगिनत हैं। ऐसे में पूरे विश्व में चमड़ा बिछवाना तो असंभव है। हां, यदि आप लोग चमड़े द्वारा अपने पैरों को सुरक्षित कर लें तो अवश्य ही पथरीले पथ व कंटीली झाडि़यों के प्रकोप से बच सकते हैं।’ वह व्यक्ति सिर झुकाकर बोला, ‘हां गुरुजी, मैं अब ऐसा ही करूंगा।’

इसके बाद चाणक्य बोले, ‘देखो, मेरी इस बात के पीछे भी गहरा सार है। दूसरों को सुधारने के बजाय खुद को सुधारो। इससे तुम अपने कार्य में विजय अवश्य हासिल कर लोगे। दुनिया को नसीहत देने वाला कुछ नहीं कर पाता जबकि उसका स्वयं पालन करने वाला कामयाबी की बुलंदियों तक पहुंच जाता है।’ इस बात से सभी सहमत हो गए।

साधक

संतों का यह अनुभव है कि किसी भी मार्ग पर चलने वाला साधक हो, यदि वह गो सेवा में लग जाता है तो उसको साध्य की प्राप्ति अति सहज हो जाती है। कारण यह है कि इस समय गोवंश पर आये संकट के कारण भगवान और संतों ने आपना आशीर्वाद गोसेवा रूपी साधन के साथ जोड़ दिया है। और वैसे भी ‘गो’ कल्याण को देने वाली है। इस प्रकार गोसेवा रूपी साधन में दोहरी कृपा बरस रही है, बस अपना कटोरा सीधा रखने की बात है।

गुरु

श्रीमान विक्की रावनजी का एक प्रश्न आपके सन्मुख रख रहा हु...आप गुरु और देवतामें क्या अंतर मानते है ..??

"यो देव: सा देवता" ऐश्वर्यशाली चेतनशक्तिको ही देवता कहते है ! दुसरे और आसान शब्दोंमें कहे तो "ददाति ह्वासो ऐश्वर्याणी" जो ऐश्वर्य प्रदान करे, वही देवता है ! तेजोमय होनेके कारण यह दुसरोको प्रकाशित करते है !

"गोप रुपें जायते इति गुरु" गुरु तत्व शरीर नहीं प्रकाश है !जिसने इन्द्रियोंको अपने वशमें करके रोम रोममें गोविन्दको बसा रखा है उसीका नाम गुरु है ! जो अज्ञान रूपी अन्धकारको निकालके प्रकाश रूपी इश्वरका साक्षात्कार करवा दे उसीका नाम गुरु है !....श्री राधेश्याम...हरि हरः

Sunday, July 17, 2011

मानव

मानव प्रकृति की सर्वश्रेष्ठ रचना है क्योंकि वही एक ऐसा प्राणी है, जो बुद्धि-विवेक से युक्त है एवं ज्ञान प्राप्त करने योग्य है। ‘श्रीमद्भागवत’ में उल्लेख है कि जगत्पिता ब्रह्मा सृष्टि-रचना काल में जब अत्यधिक प्रसन्न हुए, तब समग्र सृष्टि के निर्माण के अन्त में अपने श्रेष्ठतम युवराज के रूप में अपने मन की सत्ता से अर्थात मनः शक्ति से विश्व की अभिवृद्धि करने वाले मनुओं की रचना कर उन्हें अपना वह पुरुषाकार शरीर दे दिया (स्वीयं पुरं पुरुषं)। इससे पूर्व अन्य उत्पन्न देव, गंधर्वादि ने हर्षपूर्वक ब्रह्माजी को प्रणाम करते हुए कहा, ‘‘देव आपकी यह रचना सर्वश्रेष्ठ है। इससे श्रेष्ठ रचना और नहीं हो सकती। इस नर देह में प्राणियों के अभ्युदय तथा निःश्रेयस के समस्त साधन विद्यमान हैं। अतः इसके द्वारा हम सभी देवता भी अपनी छवि ग्रहण कर संतुष्ट हुआ करेंगे।’’ भाव यह है कि यह मानवी काया सुरदुर्लभ है। देवता भी इसे श्रेष्ठ मानते हुए उसके माध्यम से सिद्धियाँ हस्तगत करने की कामना किया करते हैं।

Thursday, July 14, 2011

महामानव

महामानव - श्री चैतन्यमहाप्रभु एकबार भगवान श्री जगन्नाथ जी के दर्शन करके दक्षिण भारत की यात्रा करने निकले थे । उन्होने एक स्थान पर देखा कि सरोवर के किनारे एक ब्राह्मणदेवता भाव विभोर होकर श्रीभगवद्गीता का पाठ कर रहा है । पाठ करते समय उस ब्राह्मणदेव के आँखोँ से अश्रुधारा बह रही थी । महाप्रभु श्रीचैतन्य चुपचाप उस ब्राह्मणदेव के पीछे खड़े हो गये और जब तक उस ब्राह्मण का पाठ चलता रहा वे शान्त खड़े रहे ।
पाठ समाप्त करके जब उस बाह्मण ने श्री गीता जी की पुस्तक बन्द की , महाप्रभु जी ने सामने आकर ब्राह्मण से पुछा , ब्राह्मण देवता । लगता है आप संस्कृत नहीँ जानते , क्योँकि श्लोकोँ का उच्चारण आपका सही नहीँ हो रहा था । पर , गीता का ऐसा कौन - सा अर्थ आप समझते हैँ कि जिसके सुख मेँ आप इतने भावविभोर हो रहे थे ।
अपने सामने एक भव्य व्यक्तित्ववाले महापुरुष को देखकर ब्राह्मण ने उन्हे दण्डवत - प्रणाम किया । फिर हाथ जोड़ कर विनम्रतापूर्वक बोला , भगवन् । मैँ संस्कृत क्या जानूं और गीता का मुझे क पता ! मुझे पाठ करना आता नहीँ । मैँ तो जब इस ग्रन्थ को पढ़ने बैठता हूँ , तब मुझे लगता है कि कुरुक्षेत्र के मैदान मेँ दोनोँ ओर बड़ी भारी सेना सजी खड़ी है । दोनोँ सेनाओँ के मध्य एक रथ खड़ा है चार घोड़ोवाला । रथ के भीतर अर्जुन दोनोँ हाथ जोड़े बैठा है और रथ के आगे घोड़ो की रास पकड़े भगवान् श्री यशोदानन्दन श्रीकृष्ण बैठे हैँ । भगवान् श्रीयशोदानन्दन श्रीकृष्ण मुख पीछे घुमाकर अर्जुन से कुछ कह रहे हैँ , मुझे यह स्पष्ट दीखता है । भगवान् और अर्जुन की ओर देखकर मुझे प्रेम से रुलाई आ रही है । महाप्रभु ने कहा , - मेरे भैया । तुम्हीँ ने गीता का , जो चारवेदोँ और समस्त शास्त्रोँ का सार है , उसका सच्चा अर्थ तुम्हीँ ने जाना है । और गीता जी का पाठ करना तुम्हेँ आता है । तुम्हेँ सब प्राप्त हो गया । तु तत्त्वज्ञ है ।
श्री नारायण हरिः ।

मंत्र ध्वनि

मंत्र ध्वनि-विज्ञान का सूक्ष्मतम विज्ञान है मंत्र-शरीर के अन्दर से सूक्ष्म ध्वनि को विशिष्ट तरंगों में बदल कर ब्रह्मांड में प्रवाहित करने की क्रिया है जिससे बड़े-बड़े कार्य किये जा सकते हैं... प्रत्येक अक्षर का विशेष महत्व और विशेष अर्थ होता है.. प्रत्येक अक्षर के उच्चारण में चाहे वो वाचिक,उपांसू या मानसिक हो विशेष प्रकार की ध्वनि निकलती है तथा शरीर में एवं विशेष अंगो नाड़ियों में विशेष प्रकार का कम्पन(VIBRATION) पैदा करती हैं जिससे शरीर से विशेष प्रकार की ध्वनि तरंगे निकलती है जो वातावरण-आकाशीय तरंगो से संयोग करके विशेष प्रकार की क्रिया करती हैं...विभिन्न अक्षर (स्वर-व्यंजन) एक प्रकार के बीज मंत्र हैं.. विभिन्न अक्षरों के संयोग से विशेष बीज मंत्र तैयार होते है जो एक विशेष प्रकार का प्रभाव डालते हैं, परन्तु जैसे अंकुर उत्पन्न करने में समर्थ सारी शक्ति अपने में रखते हुये भी धान,जौ,गेहूँ अदि संस्कार के अभाव में अंकुर उत्पन्न नहीं कर सकते वैसे ही मंत्र-यज्ञ आदि कर्म भी सम्पूर्ण फलजनित शक्ति से सम्पन्न होने पर भी यदि ठीक-ठीक से अनुष्ठित न किये जाय तो कदापि फलोत्पादक नहीं होते हैं...
घर्षण के नियमों से सभी लोग भलीभातिं परिचित होगें.. घर्षण से ऊर्जा(HEAT , ELECTRICITY) आदि पैदा होती है.. मंत्रों के जप से भी श्वास के शरीर में आवागमन से तथा विशेष अक्षरों के अनुसार विशेष स्थानों की नाड़ियों में कम्पन(घर्षण) पैदा होने से विशेष प्रकार का विद्युत प्रवाह(MICROELEVTRICITYCURRENT​) पैदा होता है, जो साधक के ध्यान लगाने से एकत्रित होता है ..तथा मंत्रों के अर्थ (साधक को अर्थ ध्यान रखते हुए उसी भाव से ध्यान एकाग्र करना आवश्यक होता है) के आधार पर ब्रह्मांड में उपस्थित अपने ही अनुकूल उर्जा से संपर्क करके तदानुसार प्रभाव पैदा होता है .. रेडियो,टी०वी० या अन्य विद्युत उपकरणों में आजकल रिमोट कन्ट्रोल का सामान्य रूप से प्रयोग देखा जा सकता है.. इसका सिद्धान्त भी वही है.. मंत्रों के जप से निकलने वाली सूक्ष्म उर्जा भी ब्रह्मांड की उर्जा से संयोंग करके वातावरण पर बिशेष प्रभाव डालती है... हमारे ऋषि-मुनियों ने दीर्घकाल तक अक्षरों,मत्राओं, स्वरों पर अध्ययन प्रयोग, अनुसंधान करके उनकी शक्तियों को पहचाना जिनका वर्णन वेदों में किया है.. इन्ही मंत्र शक्तियों से आश्चर्यजनक कार्य होते हैं, जो अविश्वसनीय से लगते हैं,यद्यपि समय एवं सभ्यता तथा सांस्कृतिक बदलाव के कारण उनके वर्णनों में कुछ अपभ्रंस शामिल हो जाने के वावजूद भी उनमें अभी भी काफी वैज्ञानिक अंश ऊपलब्ध है, बस थोड़ा सा उनके वास्तविक सन्दर्भ को दृष्टिगत रखते हुए प्रयोग करके प्रमाणित करने की आवश्यकता है...
पदार्थ जगत में विस्फोट होता है.. उर्जा की प्राप्ति के लिये पदार्थ को तोड़ना पड़ता है, परन्तु चेतना जगत में मंत्र एवं मात्रिकाओं का स्फोट किया जाता है ..शारीरिक रोग उत्पन्न होने का कारण भी यही है कि जैव-विद्युत के चक्र का अव्यवस्थित हो जाना या जैव-विद्युत की लयबद्धता का लड़खड़ा जाना ही रोग की अवस्था है.. जब हमारे शरीर में उर्जा का स्तर निम्न हो जाता है तब अकर्मण्यता आती है..मंत्र जप के माध्यम से ब्रह्मांडीय उर्जा-प्रवाह को ग्रहण करके अपने शरीर के अन्दर की उर्जा का स्तर ऊचा उठाया जा सकता है और अकर्मण्यता को उत्साह में बदला जा सकता है... चुकि संसार के प्राणी एवं पदार्थ सब एक ही महान चेतना के अंशधर है,इसलिये मन में उठे संकल्प का परिपालन पदार्थ चेतना आसानी से करने लगती है.. जब संकल्प शक्ति क्रियान्वित होती है तो फिर इच्छानुसार प्रभाव एवं परिवर्तन भी आरम्भ हो जाता है..मंत्र साधना से मन, बुद्धि, चित अहंकार में असाधारण परिवर्तन होता हे.. विवेक, दूरदर्शिता, तत्वज्ञान और बुद्धि के विशेष रूप से उत्पन्न होने के कारण अनेक अज्ञान जन्य दुखों का निवारण हो जाता है......वैज्ञानिक परिभाषा में हम इसे इस प्रकार कह सकते हैं.की ...मंत्र विज्ञान का सच यही है कि यह वाणी की ध्वनि के विद्युत रूपान्तरण की अनोखी विधि है... हमारा जीवन,हमारा शरीर और सम्पूर्ण ब्रह्मांण जिस उर्जा के सहारे काम करता है,उसके सभी रूप प्रकारान्तर में विद्युत के ही विविध रूप हैं.. मंत्र-विद्या में प्रयोग होने वाले अक्षरों की ध्वनि (उच्चारण की प्रकृति अक्षरों का दीर्घ या अर्धाक्षर, विराम, अर्धविराम आदि मात्राओं) इनके सूक्ष्म अंतर प्रत्यन्तर मंत्र-विद्या के अन्तर-प्रत्यन्तरों के अनुरूप ही प्रभावित व परिवर्तित किये जा सकते हैं.. मंत्र-विज्ञान के अक्षर जो मनुष्य की वाणी की ध्वनि जो शरीर की विभिन्न नाड़ियों के कम्पन से पैदा होते हैं तथा जो कि मानव के ध्यान एवं भाव के संयोग से ही विशेष प्रकार कि विद्युत धारा उत्पन्न करते हैं वही जैव-विद्युत आन्तरिक या बाह्य वातावरण को अपने अनुसार ही प्रभावित करके परिणाम उत्पन्न करती है..

Monday, July 11, 2011

आत्मसाक्षात्कार

आत्मसाक्षात्कार का पूर्णतया संपादन करनेवाला ही ब्राह्मण होता है... यह आत्मा ही लोक, परलोक और समस्त प्राणियों को भीतर से नियमित करता है... सूर्य, चंद्रमा, पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, तारागण, अंतरिक्ष, आकाश एवं प्रत्येक क्षण इस आत्मा के ही प्रशासन में हैं.. यह तुम्हारा आत्मा अंतर्यामी अमृत है.. आत्मा अक्षर है, इससे भिन्न सब नाशवान् हैं.. जो कोई इसी लोक में इस अक्षर को न जानकर हवन करता है, तप करता है, हजारों वर्षों तक यज्ञ करता है, उसका यह सब कर्म नाशवान् है... जो कोई भी इस अक्षर को जाने बिना इस लोक से मरकर जाता है वह दयनीय है, कृपण है और जो इस अक्षर को जानकर इस लोक से मरकर जाता है वह ब्राह्मण है......
गुणातीतो अक्षर ब्रह्म भगवान पुरुषोत्तमः , जानो ज्ञान्मिदम सत्यम मुच्च्य्ते भाव बन्धनात .
सदा सदा बापू  पिता ,मन में करो निवास,
सच्चे ह्रदय से करू, तुम से यह अरदास,
कारण करता आप हो,सब कुछ तुमरी दात,
साईं भरोसे मैं रहू , तुम्ही हो पितु मातु,
विषयों में मैं लीन हूँ , पापो का नहीं अंत,
फिर भी तेरा तेरा हूँ, रख लियो भगवंत,
रख लियो हे राखन-हारा,साईं गरीब निवाज,
तुझ बिन तेरे बालक के कौन सवारे काज,
दया करो दया करो, दया करो मेरे साईं,
तुझ बिन मेरा कौन है,बापू  इस जग माही,
मैं तो कुछ भी हु नहीं,सब कुछ तुम हो नाथ,
बच्चों के सर्वस प्रभु,तुम सदा हो मेरे साथ

GURU POONAM

Walking in BAPU'S path is difficult bcoz the HOLY PATH of GURUJEE is very PURE and full of TRUTH......so Left all OUR negativity and WRONG works......and start Walking in BAPU'S path of truth bcoz....... Truth is like surgery...... It may hurt..... but it cures.....And Lie and Negativity is like pain Killers........ It gives relief at that point of time..... but has side effects later...........BAPU'S door is open for ALL of US ALWAYSSSSSSSS.........SO choice is up to us........HAVE A LOVELY DAY TO ALL HAPPY GURU POONAM

http://www.youtube.com/watch?v=CXpBV8PImu8

हिन्दू दर्शन

ब्रह्म हिन्दू दर्शन में इस सारे विश्व का परम सत्य है और जगत का सार है ... वो ब्रह्माण्ड की आत्मा है .. वो ब्रह्माण्ड का कारण है, जिससे ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति होती है , जिसमें ब्रह्माण्ड आधारित होता है और अन्त मे जिसमें विलीन हो जाता है ..वो अद्वितीय है ..वो स्वयं ही परमज्ञान है, और प्रकाश-स्त्रोत है ... वो निराकार, अनन्त, नित्य और शाश्वत है ... ब्रह्म सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी है...
परब्रह्म :- परब्रह्म या परम-ब्रह्म ब्रह्म का वो रूप है, जो निर्गुण और असीम है ... "नेति-नेति" करके इसके गुणों का खण्डन किया गया है, पर ये असल मे अनन्त सत्य, अनन्त चित और अनन्त आनन्द है .. अद्वैत वेदान्त में उसे ही परमात्मा कहा गया है, ब्रह् ही सत्य है,बाकि सब मिथ्या है... 'ब्रह्म सत्यम जगन मिथ्या,जिवो ब्रम्हैव ना परः ,वह ब्रह्म ही जगत का नियन्ता है...
अपरब्रह्म:- अपरब्रह्म ब्रह्म का वो रूप है, जिसमें अनन्त शुभ गुण हैं ... वो पूजा का विषय है, इसलिये उसे ही ईश्वर माना जाता है .. अद्वैत वेदान्त के मुताबिक ब्रह्म को जब इंसान मन और बुद्धि से जानने की कोशिश करता है, तो ब्रह्म माया की वजह से ईश्वर हो जाता है .....ब्रह्माण्ड का जो भी स्वरूप है वही ब्रह्म का रूप या है ..वह अनादि है, अनन्त है जिस तरह प्राण का शरीर में निवास है वैसे ही ब्रह्म का शरीर यानि ब्रह्माण्ड में निवास है ... वह कण-कण में व्याप्त है, अक्षर है, अविनाशी है, अगम है, अगोचर है, शाश्वत है , सत्य है ...ब्रह्म के प्रकट होने के चार स्तर हैं - ब्रह्म , ईश्वर, हिरण्यगर्भ एवं विराट ... भौतिक संसार विराट है, बुद्धि का संसार हिरण्यगर्भ है, मन का संसार ईश्वर है तथा सर्वव्यापी चेतना का संसार ब्रह्म है ... ‘सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म’:- ब्रह्म सत्य और अनन्त ज्ञान-स्वरूप है ... इस विश्वातीत रूप में वह उपाधियों से रहित होकर निर्गुण ब्रह्म या परब्रह्म परमात्मा कहलाता है ... जब हम जगत् को सत्य मानकर ब्रह्म को सृष्टिकर्ता, पालक, संहारक, सर्वज्ञ आदि उपाधियों से संबोधित करते हैं तो वह सगुण ब्रह्म या ईश्वर कहलाता है .. इसी विश्वगत रूप में वह उपास्य है ... ब्रह्म के व्यक्त स्वरूप (माया या सृष्टि) में बीजावस्था को हिरण्यगर्भ अर्थात सूत्रात्मा कहते हैं .. आधार ब्रह्म के इस रूप का अर्थ है सकल सूक्ष्म विषयों की समष्टि ... जब माया स्थूल रूप में अर्थात् दृश्यमान विषयों में अभिव्यक्त होती है तब आधार ब्रह्म वैश्वानर या विराट कहलाता है ...
...परब्रह्म परमात्मा को प्राप्त होने के लिए सत्य का अनुशरण और जीव मात्र के प्रति प्रेम की ज्योति प्राणों में जल जाना आवश्यक है ....
.... ॐ परब्रह्म परमात्मने नमः,उत्पत्ति ,स्थिति ,प्रलाय्कारय, ब्रह्महरिहराय, त्रिगुन्त्माने सर्वकौतुकानी दर्शन-दर्शय दत्तात्रेयाय नमः ...

Friday, July 8, 2011

ढूँढे रे बन्दे

मोको कहां ढूँढे रे बन्दे
मैं तो तेरे पास में,
ना तीरथ मे ना मूरत में, ना एकान्त निवास में,
ना मंदिर में ना मस्जिद में,ना काबे कैलास में..
मैं तो तेरे पास में बन्दे मैं तो तेरे पास में....
ना मैं जप में ना मैं तप में,ना मैं बरत उपास में,
ना मैं किरिया करम में रहता,नहिं जोग सन्यास में,
नहिं प्राण में नहिं पिंड में,ना ब्रह्याण्ड आकाश में
ना मैं प्रकुति प्रवार गुफा में,नहिं स्वांसों की स्वांस में,
खोजि होए तुरत मिल जाउं ,इक पल की तालास में...
कहत कबीर सुनो भई साधो, मैं तो हूं विश्वास में ~~

"बापू मेरा सत्य गुरु"


किसी भी परिस्थिति में दूसरों को यह मौक़ा न दें कि वह आपको इतना क्रोधित कर सके कि आप कुछ ऐसा कर बैठें कि बाद में पश्चाताप करना पड़े। बहुत से लोग जो क्रोध में अपना नियंत्रण खो बैठते है वे बाद में पछताते हैं कि उन्होंने क्या कर दिया| जो व्यक्ति अपने संवेगों पर नियंत्रण नहीं रख पाते, वे स्वयं के सबसे बड़े शत्रु हैं| जब आपको कोई पागल (क्रोधित) कर देता है इसका अर्थ यह है कि आपके अंदर की कोई ईच्छा अवरोधित हो रही है, अन्यथा कोई भी आपको क्रोधित नहीं कर सकता|

Thursday, July 7, 2011

माँ-बाप का आदर क्यों करना चहिये ????


स्वामी विवेकानंद बेठे थे ...



एक लड़का आया....बोला माँ-बाप का आदर क्यों करना चहिये ????

स्वामी विवेकानंद बोले एक डेड किलो का पत्थर लेके आ ....



वो लड़का पत्थर लेके आया.......

स्वामी विवेकानंद जी ने वो पत्थर उस लड़के के पेट पे बाँध दिया ...और कहा १० घंटे बाद आना

मैं तुम्हारे प्रशन का जवाब दूंगा .....



अब वो लड़का १ घंटा भी नही रुक पाया ....परेशान परेशान हो गया...

वो लड़का वापिस स्वामी जी के पास आया और बोला मुझसे नही राह जाता ये पत्थर खोलो मुझे तकलीफ हो रही है ...

स्वामी जी ने खुलवा दिया पत्थर....



फिर लड़का बोला मेरे सवाल का जवाब दो.....

तब स्वामी जी बोले ...यही तो जवाब था....

जब तू १ घंटा भी डेड किलो के पत्थर को नही सँभाल सकता तो सोच माँ ने केसे तुझे ९ महीने पेट में रखा होगा ...

तुम तो १ घंटा भी पत्थर नही रख सके ...

सोचो उसका क्या हाल हुआ होगा .....

जिस माँ ने तुम्हे ९ महीने इतनी तकलीफ से संभाला ....

उस माँ का आदर नही करोगे तो क्या किसी हिरोइन का आदर करोगे ...
http://www.youtube.com/watch?v=nTQmzzeNhJY

Wednesday, July 6, 2011

जिसके सर ऊपर तू बापू

जिसके सर ऊपर तू बापू..वो दुख कैसा पावे,
मेरा दाता है तू, मेरा स्वामी है तू
मेरा साहारा है तू, मेरा किनारा है तू
मेरे सुख में है तू, मेरे दुःख में है तू
मेरी आँखों में तू, मेरी नीदों में तू
मेरे दिल में है तू, मेरी धरकन भी तू
मेरे ख्यालो में तू, मेरी सासों में तू
जिसके सर ऊपर तू बापू..वो दुख कैसा पावे......
जिसके सर ऊपर तू बापू..वो दुख कैसा पावे,
मेरा दाता है तू, मेरा स्वामी है तू
मेरा साहारा है तू, मेरा किनारा है तू
मेरे सुख में है तू, मेरे दुःख में है तू
मेरी आँखों में तू, मेरी नीदों में तू
मेरे दिल में है तू, मेरी धरकन भी तू
मेरे ख्यालो में तू, मेरी सासों में तू
जिसके सर ऊपर तू बापू..वो दुख कैसा पावे......

guru

Guru is my worship and Guru is my Lord.

Guru is my Lord Almighty and Guru is my Supreme Master.

Guru is my imperceptible and inaccessible all Luminous Lord.

All serve and worship my Guru's holy feet.

Without Guru I have no other abode.

Day and night I worship Guru's Name.

Guru is my worship and Guru is my Lord.

Guru is my Lord Almighty and Guru is my Supreme Master

जय साईंआसाराम

तीन अक्षर का तेरा नाम, सब बोलो जय जी साईंआसाराम
जय साईंआसाराम जय साईंआसाराम जय साईंआसाराम
जय साईंराम जय साईंराम जयसाईं राम |
तीन अक्षर मै मेरा प्यार
सब बोलो जय साईंआसाराम, जय साईंआसाराम जय साईंआसाराम जय साईंआसाराम
जय साईंआसाराम जय साईंआसाराम जय साईंआसाराम |
तीन अक्षर को करू प्रणाम
सब बोलो जय साईंआसाराम, जय साईंआसाराम जय साईंआसाराम जय साईंआसाराम
जय साईंआसाराम जय साईंआसाराम जय साईंआसाराम |
तीन अक्षर मै मेरा धयान
सब बोलो जय साईंआसाराम,जय साईंआसाराम जय साईंआसाराम जय साईंआसाराम
जय साईंआसाराम जय साईंआसाराम जय साईंआसाराम |

THE POWER OF PRAYER

It is in prayer that we thank you
For the blessings that you give
And with praise that we worship you
For you give us hope to live
It is in prayer that we call upon you
For all your help we ask
To strengthen and to guide us
For troubled times to pass
And in those times of our most need
When we forget how to pray
That's when we know your love for us
Forevermore will stay
Because in prayer you give us wings
And teach us how to fly
Should we happen to forget
How to reach you in the sky

Tuesday, July 5, 2011

इश्क़ ही बापू

कहते है लोग, ये इश्क़ आग का दरिया होता है!
कैसे कहें हम, कि इश्क़ ही बापू  के दिल तक पहुँचने का ज़रिया होता है!
कहते है लोग, ये इश्क़ समंदर से भी गहरा होता है!
कैसे बताए, कि इश्क़ में, हर पल एक नया सवेरा होता है!
कहते है लोग कि इश्क़ में, कदम कदम पर संभालना होता है!
कैसे बताए, कि इश्क़ में, बापू के साथ मिलकर एक राह पर चलना होता है!
कहते है लोग, कि इश्क़ में, माँगनी होती एक मन्नत है!
कैसे समझाऊ, कि बापू  से इश्क़ करना,
बन गई है मेरे लिए एक जन्नत
कहते है लोग, ये इश्क़ किसी और की अमानत होती है!
कैसे कहे सबसे, कि मेरे लिये ये इश्क़,
बापू  की दी हुई एक नेमत है!

Monday, July 4, 2011

Bapu

Bapu har naye din ki umeed hai...

Bapu pehli baarish ki boondon mein hai..

Bapu khilte phoolon ki khushboo mein hai..

Bapu dhalte sooraj ki kirano mein hai..

Bapu har naye din ki umeed hai..

Bapu khwaab hai,Bapu jeet hai..

Bapu pyaar hai,Bapu geet hai..

Bapu do jahano ka sangeet hai..

Bapu har khushi,Bapu zindagi..

Bapu hai roshni, Bapu bandagi..

Bapu sang chalty hawaon mein hai..

Bapu in barasti ghataon mein hai..

Bapu doston ki wafaon mein hai..

haath uttha kay jo maangi gayi hai dua..

Bapu ka asar in duaon mein hai....!!!

MIRACLES

Miracles happen when we pray,
Bapu always answers in His own way.
So upon these hearts write your request
and know that Bapu will do His best

Do not be anxious about anything, but
in everything, by prayer and petition, with
thanksgiving, present your requests to Bapu."
may Bapu jee bless all the universe ... gud mrg to all..<3

Sunday, July 3, 2011

कौरवों के नाजायज

!! जय श्री कृष्ण !!
बचे-खुचे कौरवों के नाजायज औलाद हैं, ये सब, और उनके खून में भी गोरों का खून मिश्रित हो गया है ! वरना ऐसा कभी न कहते ! अपने कौम के लिए एक मुसलमान धर्म के नाम पर पाकिस्तान से हिंदुस्तान आकर एक हिन्दू धर्म प्रचारक को मरने कि क्षमता रखता है ! एक ईसाई अपने धर्म के विस्तार के लिए अपना सर्वस्व लुटा कर एक हिन्दू को खरीद लेने कि क्षमता रखता है ! लेकिन आज का हिन्दू कहा जाने वाला एक नवयुवक पैसों के लिए अपने धर्म को बेच देने को तैयार है ! एक ब्राह्मण वेद मन्त्रों के माध्यम से अनुष्ठान करवा कर किसी के जीवन में परिवर्तन करवा दे तो ये पाखंड है ! और एक मदर टेरेशा, किसी स्त्री का स्पर्श करे और संयोग से उसके गर्भाशय का कैंसर ठीक हो जाय तो ये महान चमत्कार है ! और उनके कौम उनके देशवासियों कि क्या, भारत सरकार भी उसको संताधिराज या (महामनीषी) कि उपाधि से समलंकृत करती है ! ये केवल भारत सरकार ही कर सकती है ! क्योंकि यहाँ हिन्दू का मतलब जानवर समझा जाता है, यहाँ हिन्दू का मतलब गुलाम समझा जाता है ! लेकिन इनको क्या मालूम कि, जो हिन्दू ----- अतिथि देवो भव:! कह कर सम्मान करना जानते हैं, वही हिन्दू पूरी दुनियां पर अकेले ही भारी पड़ते हैं ! सच्चाई और इमानदारी का पाठ पढ़ने-पढ़ाने वाले हिन्दुओं का जगद गुरु (कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम) दुनियां का नंबर वन छलिया है ! हम जब अपने पर उतर जाएँ तो, मिनटों में पूरी दुनियां को मुट्ठी में करना जानते हैं ! लेकिन पहले तो हमें इन मीर जाफर के बंसजों से, जो नेता बनकर, हमारे ही वोटों से हमीं पर हुकूमत कर रहे हैं ! तथा हमारे ही धन पर राज करते हुए हमीं को आँख दिखा रहे हैं ! जहाँ कोई कट्टर हिन्दू इनके सामने खड़ा होता है, तो जैसे इनकी माँ मर जाती है ! किसी को बर्दास्त ही नहीं कर सकते ! इनको मिटाना है ! कांची कामकोटी शंकराचार्य जी को बदनाम किया,क्योंकि वो गरीब हिन्दू जो क्रिश्चन बन गये थे, उनको हिन्दू बनने का काम कर रहे थे ! आशाराम जी को बदनाम किया और अभी-भी करने का प्रयत्न कर रहे हैं, क्योंकि वो हिंदुत्व का प्रचार करते हैं ! मंदिरों को मिटने का प्रयत्न किया जा रहा है, क्योंकि यहीं से धर्म शुरू होता है ! मंदिरों के धन को लुटा जा रहा है, क्योंकि ये भारत कि अचल संपत्ति है ! जिस दिन भारत के राजाओं का धन कम पड़ जाता है, प्रजापालन के लिए उस मंदिरों से भारत के प्रजा का पालन किया जाता है ! लेकिन इस स्विस बैंक में रखे नेताओं का धन तो चाहे भारत कि प्रजा भूख से तड़प कर मर भी जाय तो नहीं आएगी ! तो आप बताईये कि मंदिरों में रखा धन हमारे लिए उपयोगी है, अथवा इन नेताओं द्वारा विदेशी बैंकों में रखा धन ? और एक बात, इन क्रिश्चानों (ईसाईयों) का दावा है कि इन्होंने १०००.वर्ष के अन्दर पुरे यूरोप, फ़्रांस और जर्मनी को ईसाई बना दिया ! अब हिन्दू और मुसलमान बाकि है ! तो पहले हिन्दुओं को ईसाई बनाने के लिए मुसलमानों का उपयोग करें ! और फिर मुसलमानों को तो यूँ ही गर्दन दबा के ईसाई बना देंगे ! और इसके लिए चर्च जो यहाँ बन रहे हैं, वो हमारी तरह धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि ईसाई मिशनरी का आफिस है ! और इसी के अधीन भारत सरकार काम कर रही है, अगर ऐसा नहीं होता तो शंकराचार्य के जमानत कि अर्जी नामंजूर नहीं होती ! नामंजूर इसलिए हुई, क्योंकि उनसे ईसाई मिशनरी का सीधा टक्कर हो गया ! अब इस ईसाईयों के पतन को रोकना था ! क्योंकि ईसाई बने हिन्दुओं को वो सब कुछ शंकराचार्य द्वारा चलाये जा रहे अभियान के माध्यम से फ्री में मिल रहा था, जो ईसाईयों द्वारा दिया जाता था ! अब ईसाई मिशनरी के सामने चुनौती बनकर खड़े इन शंकराचार्य के दूतों को कैसे हटाया जाय ! तो निष्कर्ष निकला कि इनको इतना बदनाम कर दो कि आनेवाला डोनेशन न मिले, जिससे इनका मिशन चलता है ! आपको मालूम है, देश और विदेशों से आनेवाले दान कितने होते हैं, शंकराचार्य जी के पास हर वर्ष ५ हजार करोड़ डालर ! जिससे यह मिशन चलता था ! इन ईसाईयों ने सोंचा कि इनके दान को ही नहीं बल्कि इनको ही मिटा दो ! तो सोनिया को चर्चों द्वारा धमकी भरा सन्देश दिया गया, और लग गयी इस नेक काम में ईसाईयों कि एजेंट, हमारे देश का भविष्य बनाने वाली, यहाँ के मर्दों को अपने इशारों पर नचाने वाली, राजमाता कहलाने का ख्वाब देखने वाली ! इंगलैंड कि महारानी कि तरह भारत कि महारानी बनाने का सपना सजाने वाली, एक विदेशी विधवा ! जो विधवा शब्द को नहीं जानती, वो देश को चलने चली ! और बिच में ही ईसाई मिशनरी के इशारे पर नाचते हुए ! शंकराचार्य जी के जमानत को जप्त करवा दिया ! शिबू शोरेन जो हजारो मुशलमानों को जिन्दा जला कर जीवित है, घूम रहा है ! इसकी सरकार उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती, क्योंकि उसके एक इशारे पर इस सरकार कि नीव हिल जाएगी ! लेकिन हिन्दू उसके गुलाम हैं, जैसे चाहे घुमा सकती है ! प्रमाण --- सोनिया को चर्च ने घुमाया, इसने मायावती को घुमाया, मायावती ने सुप्रीम कोर्ट को घुमाया ! और हो गयी शंकराचार्य जी कि जमानत जप्त, और सारे हिन्दू देखते ही रह गये ! कुछ भी उखाड़ नहीं पाए ऐसे मुद्दे ऐसे अपराध दिखा दिए गए कि सबकी बोलती बंद हो गयी ! लेकिन किसी ने यह नहीं सोंचा, कि इतने ऊँचे आसन पर बैठने वाला कोई साधारण पुरुष नहीं है, बल्कि भारत में उसे दैवी शक्ति से सम्पन्न माना जाता है ! भगवान का प्रतिनिधि माना जाता है,उन भगवान के प्रतिनिधि का अपमान अर्थात भगवान के अपमान जैसा अपमान सहन कर गये, क्यों ? क्योंकि इन ईसाईयों ने कहा, इन ईसाईयों कि प्रतिनिधियों और चर्च के प्रतिनिधियों के तलवे चाटने वाले इन नेताओं के इशारे से केवल अन्याय करने वाले इस कोर्ट के फैसले को सहजता से स्वीकार कर लिया किसी ने कोई विरोध नहीं किया ! इन ईसाईयों का इतिहास हमारे देश में रहा है, कि जिन राजाओं ने इनको आश्रय दिया, इन्होंने उन्हीं को लुटा ! झूठ इनके रग-रग में समाया है, सोते हुए स्वप्न में भी जो झूठ ही बड़बड़ाते हैं, और इन्हीं के इशारे पर चलने वाला हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट कहाँ तक सच बोल सकता है ! और समस्त हिन्दू चुप-चाप इस असह्नीय अपराध को अपमान को बर्दास्त कर गये किसी ने एक शब्द भी बोलने का साहस नहीं किया ! लेकिन अब और नहीं ! अरे जब यह कांग्रेश पार्टी इतना लुट रही है, मान लो सब लुटेरे ही हैं, तो हमें क्या फर्क पड़ता है, कोई भी पार्टी आये ! और जब कोई भी पार्टी तो भा.ज.पा. क्यों नहीं ! पूर्ण बहुमत से भा.ज.पा. को लाओ ! ऐसा नारा लगाना है ! और ऐसाही हो इसके लिए अपना जी-जान लगा देना है ! जब कोई भी लूटे तो भारतवासी क्यों नहीं ! हिंदुत्व वादी पार्टी क्यों नहीं ! भा.ज.पा. क्यों नहीं ! भा.ज.पा. को लाओ ! कांग्रेश को मिटाओ ! हिन्दुओं को और देश को बचाओ ! हिन्दू धर्म को बचाओ ! वरना ईसाई बनने के लिए तैयार हो जाओ ! फैसला आपके हाथ !!
!! जय श्री कृष्ण !!

Friday, July 1, 2011

LUV U BAPU

IN OUR GARDEN WE HAVE BIRD TABLE AND IN THE MORNING LUNCH AND EVENING WE FEED BIRDS AND HAVE A BIRD BATH WHERE WE PUT WATER ALWAYS FOR BIRDS TO HAVE LITTLE BATH AND DRINK WATER....WE HAVE TRAINED OUR CHILDREN AND GRANDCHILDREN THAT LETS GO AND FEED BIRDS THEY GET SO EXCITED AND SEE THE BIRDS FLY BACK AND SIT ON THE FEED TABLE AND FEED THEMSELVES AND HAVE SPLASH AROUND IN THE BATH...THIS WAY THIS MAKES THEM HAPPY AND US HAPPY TO SEE THEM HAPPY AND THE BIRDS GET THEIR FOOD AND WATER SUPPLY...THIS YOU CAN DO WITH YOUR OWN CHILDREN AND GRANDCHILDREN TOO...AND SEE THAT NO FOOD IS WASTED BY ANYONE..BAPU BLESS EVERYONE..LOVE YOU BAPU..<3