Wednesday, January 26, 2011

ये शास्त्रों का नाद है और यही अटल सत्य है

जय श्री कृष्ण,
       गीता में भगवान सी कृष्ण कहते हैं --- अर्जुन के पूछने पर, अर्जुन ने पूछा की हे वार्ष्णेय ! किसकी प्रेरणा से न चाहते हुए भी व्यक्ति बलपूर्वक पापाचरण करता है,भगवान बोले --- काम एष क्रोध एष रजोगुण समुद्भवः ! महाशनो महापाप्मा विद्धयेनमिह वैरिणम !! (गीता ३/३७)
अर्थात हे अर्जुन ! रजोगुण से उत्पन्न यह काम ही क्रोध है , यह भोगों से कभी न अघाने वाला और बड़ा पापी है , इसको ही तू इस विषय में अपना सबसे प्रबल शत्रु मान (समझ) !!
          अभिप्राय यह है की हम दुनियां की बातें तो कर लेते है , अथवा ज्ञान की बड़ी - बड़ी शेखी बघार लेते है ! लेकिन क्या ये हमारा मन हमारे बस में है क्योंकि -----   मन: एव मनुष्याणाम कारणं बंध मोक्षयो:!! मन ही मनुष्य के बंधन और मोक्ष का कारण है !! गीता के ही दुसरे एक सूत्र के अनुसार , पहले किसी भी चीज को देखने या सुनने की ईच्छा जाग्रत होती है, फिर उसे पाने की कामना, न मिलने पर क्रोध और उसके बाद पतन !! तो इन सबका जिम्मेवार कौन है,क्या ये विचारणीय प्रश्न नहीं है !!  अगर है तो फिर इन सब फालतू के तर्क वितर्कों में अपना बहुमूल्य समय गंवाने का क्या मतलब !! ये ऐसा नहीं वैसा, वो वैसा नहीं ऐसा, ये ॐ कार क्या है ये शिव बड़ा की राम बड़ा,तो कभी रुद्राक्ष क्या है, कभी नारद कौन थे ! इस तरह की तरह - तरह की बातों का कोई मतलब नहीं बनता हमारे ख्याल से , क्योंकि ------ तुलसीदास जी के अनुसार को बड़ छोट कहत अपराधू !!
          और रही ॐ कार की बात तो ये तो अनाहत नाद है , ये तर्क का विषय नहीं है , ये तो पचाने की चीज है , अगर क्षमता है तो इसे पचाकर देखो फिर अपनी पहचान बताने की जरुरत नहीं !! फिर तुम्हें गुरुओं के गुरु बनने से कोई नहीं रोक सकता,फिर तो बड़े - बड़े आचार्य आकर चरणों की बंदना करेंगे, फिर दुनियां के उस शीर्ष को पाने अथवा छूने से कोई नहीं रोक सकता , ये शास्त्रों का नाद है और यही अटल सत्य है !!
!! जय श्री कृष्ण !!

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