Wednesday, February 29, 2012

अर्थ नहीं

हम सब अपने आपको आलोक से भरे तो ही वह प्रभात निकट आ सकता है ! उसकी संभावना को वास्तविकता में परिणत करना हमारे हाथो में है !
हम सब भविष्य के उस भवन की ईंटें है ! और, हम ही है वे किरणे जिनसे उस भविष्य के सूरज का जन्म होगा ! हम दर्शक नहीं, सृष्टा है !
और, इसलिए वह भविष्य का ही निर्माण नहीं, वर्तमान का ही निर्माण है ! वह हमारा ही निर्माण है ! मनुष्य स्वयं का ही सृजन करता है ! व्यक्ति ही समिष्ट की इकाई है ! उसके दुवारा ही विकास है और क्रांति है !
वह इकाई आप है !
इसलिए, मैं आपको पुकारना चाहता हूँ ! मैं आपको निद्रा से जगाना चाहता हूँ !
क्या आप नहीं देख रहे है कि आपका जीवन एक बिलकुल बेमानी, निरर्थक और ऊब देनेवाली घटना हो गया है ? जीवन ने सारा अर्थ और अभिप्राय खो दिया है ! यह स्वाभाविक ही है ! मनुष्य के भीतर प्रकाश न हो तो उसके जीवन में अर्थ नहीं हो सकता है !

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