Saturday, March 17, 2012

सत्य


सत्य तो नहीं सिखाया जा सकता पर सत्य को जानने कि विधि सिखाई जा सकती है ! .......इस विधि की कोई चर्चा नहीं है ! सत्य की चर्चा तो बहुत है ! पर सत्य-दर्शन की विधि की चर्चा नहीं है !
इस से बड़ी भूल नहीं हो सकती है !
यह तो प्राण को छोड़ देह को पकड लेने जैसा ही है ! इसके परिणाम स्वरूप ही धर्म तो बहुत है, धार्मिकता धर्म नहीं है ! आज जो संप्रदाय धर्म के नाम पर चलते दीख रहे है, वे धर्म नहीं है ! धर्म तो एक ही हो सकता है ! उसमे विशेषण नहीं लग सकता ! वह तो विशेषणशून्य है !
धर्म यानि धर्म वह 'यह' धर्म और 'वह' धर्म नहीं हो सकता है !
जहाँ 'यह' और 'वह' है, वहां धर्म नही है !

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