Wednesday, March 30, 2011

धर्म कि नाम से एलर्जी क्यों ?

धर्म कि नाम से एलर्जी क्यों ?

बिशेष कर आज हम युवा पिढियों को धर्म कि नाम सुनते हि चिढ होने लगजाता है एसा क्यों ? यहाँ पर यह प्रसगं इसिलिये रखरहा हुँ कि खुद भि एक युवक होने कि नाते हम युवा लोगों को समझ ना अती आवस्यक है कि सही मे धर्म कि अर्थ क्या है जिस को जान लेने के बाद धर्म से नफरत नही अपितु प्रेम होने लगेगी ,एसे तो आज धर्म कि नाम पर समाज के अन्दर बहुत कुछ होरहा है जिस के कारण आज लोगों को सहि दिसा नही मिलरहा है और यही कारण से भि हम युवा बर्ग को एसा लगने लगता है कि धर्म तो एक अन्ध विश्वाश है ,धर्म एक रुढी बाजी है इसमे कुछ नही इत्यादी ..............
एसा तभी तक होता है जब तक हम धर्म कि अर्थ को समझ नही सकेगें वास्तव मे धर्म माने होता है धाराण करने वाला सक्ती ,जो सक्ती सारे संसार को धाराण कररही है वह सक्ती क्या है ? जो सम्पूर्ण प्राणियो को धाराण किया है वह सक्ती है आत्मा ,आत्मा कि सक्ती से आज हम सब संसार मे मौजुद है उसी सक्ती को जानना हि वास्तविक धर्म को समझ ना है अगर हम भि उस सक्ती को जान लेगें तो धर्म से हमारा भि प्रेम होने लगेगी |सही धर्म जो होता है वह कभी भि मानव को तोड्ता नही वल्कि एक आत्मा कि सुत्र से सब को प्रेम कि डोर बांध लेता है |
तुझ मे राम मुझ मे राम सब मे राम समाया है ,
सब से कर लो प्रेम जगत मे कोही नही पराया है ||
जरा ईतिहास को देखें स्वामी विवेकानन्द जि पढे लिखे नव जवान युवक थे ,क्या उन कि पास सहि और गलत क्या है जान्ने कि विवेक नही थि ? लेकिन एक पढा लेखा युवक को एक साधारण सा दिखने वाले राम कृष्ण परम हंस से क्या मिला बाद मे खुद भि सन्यास बन कर के धर्म कि तत्व को देस ,बोदेसों तक घुम -घुम कर समझाया और युवा सक्तियो को आवहान किया कि भारत माता के सुपुत्रों धर्म केवल दिखावा ,केवल कर्म कान्ड तक सिमित रहना हि धर्म नही है ,धर्म तो वह है जो इन्सान को अपना वास्त्विक स्वरुप का पहिचान कराये और आप भि जाने दुसरो को जनाने के लिये मानव सेवा मे लग गये |तो आज भि हमे एसे गुरु कि तलास करना होगा जो गुरु कि ज्ञान से जीवन का वास्तविक स्वरुप (धर्म )का बोध हो सके और समाज मे आत्मिक , नैतीक ,चारित्रिक ,आर्थिक बिकास होकर के एक सम्ब्रिद्धी सिल समाज का निर्माण हो सके और आज का भटक ता हुवा हम युवा सक्ती अपने सक्ती को एकाग्र कर के राष्ट्र निर्माण मे सहयोगी बन सकें

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