Saturday, March 19, 2011

भाव आ जाय तो अज्ञानी होते हुए भी मनुष्य, ज्ञानियों में अग्रगण्य हो जाता है


जय श्री कृष्ण,
एक बार की बात है, रात को लगभग १.०० बज रहे होंगे,राजा अपने महल क़ि अटारी पर टहल रहा था ! नींद नहीं आ रही थी, देखा एक फकीर एक पेड़ के निचे जोर-जोर से खर्राटें भर रहा था ! राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ क़ि इतनी व्यवस्था होने के बाद भी मुझे नींद आने का नाम नहीं लेती ! और इसे देखो कितनी चैन कि नींद ले रहा है,जरुर इसने कोई अमूल्य संपत्ति प्राप्त कर ली है,इसीलिए इसे इतनी चैन कि नींद नसीब हो रही है ! अवश्य ही इसकी संपत्ति मेरी तुलना में कीमती है ! अत: इसकी संपत्ति का राज जानना आवश्यक है ! राजा अपने महल की अटारी से उतरा और उस फकीर के पास चल दिया ! जाकर बड़ी विनम्रता से इस नींद का राज पूछा और कोई अमूल्य धन आपको प्राप्त है, तो कृपया उस संपत्ति को हमें भी प्रदान करें प्रभो, हम आपकी शरण में हैं ! सच्ची श्रद्धा पहचान कर फकीर ने कहा भाई वो संपत्ति तो मैं तुम्हें दे दूंगा, लेकिन एक शर्त है, राजा ने कहा हमें सब मंजूर है ! फकीर ने कहा : हमारा तुम्हारा खर्चा कैसे निकलेगा ! इसलिए आज से खैनी बेचोगे तुम और इसी शहर में ! राजा ने कहा महाराज मैं इस शहर का राजा हूँ ! फकीर ने कहा तो तुम्हें किसी विशेष धन की क्या आवश्यकता है ! नहीं आप वाला कुछ विशेष है,अत: आप वाला ही मुझे चाहिए ! बोले तो ठीक है,जाओ खैनी बेच कर धन लाओ,और जो भी धन तुम लाओगे,आज से उसी से हमारा तुम्हारा गुजारा होगा ! फकीर की आज्ञानुसार राजा अपने ही राज्य में खैनी बेचता लोग तरह-तरह के ताने कशते,फिर भी बिना किसी की परवाह किए इस कार्य को अंजाम देता रहा ! घरवाले भी आये,बहुत मनाया,राजा नहीं माना ! १० वर्ष निकल गये,एक दिन राजा ने फकीर से कहा: अब तो मैं उस गुप्त धन को पाने (संभालने) लायक हो गया हूँ,अब तो आप उसे हमें प्रदान करें ! फकीर ने कहा: ठीक है एक काम करो राज्य के सभी नागरिकों से पूछ कर आओ कि तुम्हारे व्यवहार से सभी संतुष्ट हैं या नहीं ! राजा जब लौट के आया तो फकीर ने पूछा: क्या हुआ ? राजा ने कहा : गुरुदेव ! मैंने सबको पूछ लिया है. सब संतुष्ट हैं,हाँ एक आदमी नहीं था, घर पे, तो मैंने अपने पुत्र को कह दिया है कि जैसे ही आवे उसे खूब धन देना ताकि वो संतुष्ट हो जावे ! फकीर ने कहा : खैनी बेचने जाओ अभी तुम उस धन को संभालने के लायक नहीं हुए हो ! राजा खैनी बेचता रहा ! पुन: ५ वर्षों के बाद वही प्रश्न किया ! फकीर ने फिर वही करने को कहा,राजा ने जबाब दिया गुरुवर,सारी दुनियां अपने आप में समाहित नजर आती है,कोई पराया नजर नहीं आता,किससे पूछूं कि संतुष्ट हो या नहीं ! महाराज अब तो अपने आप में संतुष्टि नजर आती है ! पूछने कि आवश्यकता ही नहीं है ! फकीर का ह्रदय स्नेह और प्रेम से सराबोर हो गया ! और सम्पूर्ण ज्ञान का छलकत सागर राजा के ह्रदय में उड़ेल दिया और राजा के जीवन को धन्य बना दिया !
!! वह राजा शिबली और फकीर जुनैद थे !!
अभिप्राय यह है कि जबतक हमारे अन्दर मैं,मेरा "" यह भाव विद्यमान है तबतक वो ज्ञान पाकर भी अज्ञानी हैं ! जैसे ध्रुव ! बाद में जब सत्संग मिला तो वही ध्रुव - ध्रुव पद को प्राप्त हो गये !!
और भाव आ जाय तो अज्ञानी होते हुए भी मनुष्य, ज्ञानियों में अग्रगण्य हो जाता है :-- जैसे प्रह्लाद !!
!! जय श्री कृष्ण !!

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