Wednesday, April 20, 2011

********माया********

माया सम्पूर्ण जगत को नचाने में लगी रहती है! ब्रह्मा से लेकर
स्तम्बपर्यंत जितने पांच इन्द्रियों से सम्बन्ध रखने देवता, दानव एवं मानव
हैं, वे सभी मन और चित्त का अनुसरण करते हैं! सत्त्व, रज और तम--ये तीन
गुण ही सर्वथा सब में कारण होते हैं! कार्य, कारण को लेकर ही होता है--यह
बिलकुल निश्चित है! माया से उत्पन्न हुए तीनों गुण पृथक-पृथक स्वभाव के
होते हैं; क्योंकि शांत, रौद्र और मूढ़--तीन प्रकार का भेद इन में पाया
जाता है! भला, सदा इन गुणों का आश्रित पुरुष इनके अभाव में कैसे कायम रह
सकता है? जिस प्रकार संसार में तन्तुविहीन पट की सत्ता मानना असंभव है,
वैसे ही तीनों गुणों से हीन प्राणी के विषय में समझना चाहिये---यह बिलकुल
निश्चित बात है!

देवता मानव अथवा पशु किसी का भी शरीर गुण रहित होने पर वैसे ही कायम नहीं
रह सकता, जैसे मिटटी के बिना घडा नहीं रह सकता! गुबोब का संयोग होने से ही
ब्रह्मादि-प्रधान देवताओं के मन में कभी प्रसन्नता होती है, कभी सदासीनता
छ जाती है और ये कभी विषादग्रस्त भी हो जाती हैं! ऐसे ही सूर्य वंशी एवं
चन्द्र वंशी चौदहों मनु प्रत्येक युग में गुणों के अधीन रह कर कार्यभार
संभालते हैं! तब फिर इस जहर में रहने वाले एनी साधारण व्यक्तियों के लिये
कौन-सी बात है? देवता दानव, मानव आदि सारा प्राणिजगत कदापि संदेह नहीं
करना चाहिये! प्राणी माया की अधीनता में रहकर उसके आज्ञानुसार ही चेष्टा
करता है! वह माया परम तत्त्व के रूप में सदा सम्मिलित रहती है! उस परम
तत्त्व की आज्ञा पाकर प्राणियों को प्रेरित करना इसका नित्य का कार्य है!
उस माया को सहचरी रूप में स्वीकार करने वाली भगवती परमेश्वरी सदा उसे साथ
लिये रहती है! इसीलिये सच्चिदानन्दमय -विग्रह धारण करने वाली उन भगवती को
" मायेश्वरी" कहा जाता है! इनके ध्या, पूजन, नमस्कार और जप में सदा तत्पर
रहना चाहिये! इससे अपनी दयालुता के कारण वे प्राणी को माया रहित बना देती
हैं-- अपनी अनुभूति प्रदान करके वे माया को हर लेती हैं! अतएव इन भगवती
परमेश्वरी को "भुवनेशी" कहा हया है! इसके समान त्रिलोक में कोई सुंदरी
नैन है! यदि इनके रूप का ध्यान करने में चित्त निरंतर लग जाय तो
सदसत्स्वरूपिणी माया को दूर करने की इच्छा हो तो सच्चिदानन्दरूपिणी माया
अपना क्या प्रभाव दाल सकती है?

जिस प्रकार अन्धकार किसी दूसरे सघन अन्धकार को दूर करने में समर्थ नहीं हो
सकता ; किन्तु उसे मिटाने में सूर्य, चन्द्रमा अथवा अग्नि के तेज ही समर्थ
हैं, उसी प्रकार मायेश्वरी भगवती जगदम्बा ही अपनी प्रभा से माया को दूर
करती हैं--ऐसा जानना चाहिये! अत: मायिक गुणों से निवृत होने के लिये
प्रसन्नतापूर्वक भगवती की उपासना करनी चाहिये!

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