Thursday, April 28, 2011

इन्टरनेट की बोली

जीवन जीने की कला इन्टरनेट की बोली द्वारा :-

जब हम नियम करते है तब हमारा चित ऑनलाइन रहता है ,
परन्तु जब नियम ख़तम हो जाता है तब हमारा चित ऑफलाइन हो जाता है .
लेकिन हम साधकों को चाहिए की हिमारा चित हमेशा इंविसिबल रहे,
इसका एक मात्र कारण है की सतत संसार का चिंतन एवं संसारी लोगों से व्यवहार,
जिससे हमारी अधिकतर साधना कम हो जाती है ,
लेकिन हम साधकों को चाहिए की हम इंविसिबल ही रहे ,मतलब ..........
..'अपने चित के अन्दर अपने गुरु के प्रति भक्ति भाव रखते हुए........
संसार को इस प्रकार चलाना की उसे पता ही नहीं चले की हम अन्दर से उस परम देव........
. अंतर आत्मा.. परमात्मा से जुड़े है परन्तु बहार से सम है , और ऐसा करने से
ये संसारी लोग हमे उससे तोड़ने की कोशिश नहीं करेंगे , इसलिए हम इंविसिबल रहकर
उस परम सुख को पाकर आत्मसाक्षात्कार कर सकते है .......हरी ॐ


ऑनलाइन मतलब- भक्ति भाव में रहना
ऑफलाइन मतलब - भक्ति भाव से निकल कर संसार का चिंतन करना
इंविसिबल मतलब - अन्दर से प्रभु से जुड़ना और बाहर से सम रहना

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