Thursday, March 22, 2012

अहंकार

मैं लोगो को मंदिर जाते देखता हूँ :मैं उनको पूजा-आराधना करते देखता हूँ :मैं उन्हें ध्यान में बैठे देखता हूँ. . .पर यह सब उनके लिए क्रिया है. . . . . एक तनाव है ....एक अशांति है, और फिर वे इस अशांति में शांति के फूल लगने की आशा करते है, तो भूल में है !
सत्य को खोजे नहीं ! खोजने में अहंकार है ! और अहंकार ही तो बाधा है अपने को खो दे ! मिट जाए ! जब 'मैं=भाव' मिटता है, तब 'मैं-सत्ता ' मिलती है !........जैसे बीज जब अपने को तोड़ देता है,और मिटा देता है, तभी उसमें नवजीवन अंकुरित होता है, वैसे ही 'मैं' बीज है, वह आत्मा का बाहरी आवरण और खोल है, वह जब मिट जाता है तब अमृत जीवन के अंकुर का जन्म होता है ! 

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