Friday, August 19, 2011

बालकों का श्वासकष्

* बालकों का श्वासकष्टः बच्चों में कफ का अवरोध होने पर रुद्राक्ष का चूर्ण रत्ती की मात्रा में शहद में मिलाकर बारबार चटाने से आसानी से कफ निकलता है और श्वासकष्ट भी ठीक हो जाता है।
* अतिसारः अतिसार रोग में इसके फल को पानी में घिसकर पिलाने से हितकारी है।
* मसूरिका व रोमान्तिकाः मसूरिका व रोमान्तिका में प्रसार की स्थिति में रुद्राक्ष की माला धारण करने से इनसे बचाव रहता है और रोग की स्थिति में भी इनके दुश्परिणाम नहीं होते।
* मानसिक रोगः रुद्राक्ष मानसिक रोग, अपस्मार (मिर्गी), आक्षेपक, अपतंत्रक, अनिद्रा आदि में विशेष लाभकारी होता है। इनमें इसकी माला धारण करने से लाभ होता है।
* वृक्करोगः गुर्दे के रोगों में, हिपाटेमेगाली (लीवरवृद्धि) में और कामला (पीलिया) में रुद्राक्ष के पानी का सेवन लाभकारी होता है।
* उच्च रक्तचापः हाई ब्लड प्रेशर में एक रुद्राक्ष को एक गिलास पानी में भिगों दें और सुबह इसका जल पीने को देवें। यह प्रयोग निरंतर करते रहें। हाई बीपी में रुद्राक्ष की माला का धारण भी काफी असरकारी होता है।
* अन्य रोगों में ए़ड्‌स की प्रारंभिक अवस्था में, क्षय रोग में, रक्तपित्त, कासश्वास, प्रमेह रोग में भी यह अतीव उपयोगी है। यह परम रसायन है और अनेक रोगों से बचाव भी करता है।

रुद्राक्ष धारण का चिकित्सकीय महत्वः
शरीर में रुद्राक्ष धारण करने से रोमकूप के माध्यम से रक्त की कोशिकाओं द्वारा रक्तवाहिनी, शिरा एवं धमनियों पर इसका प्रभाव होता है। 
रुद्राक्ष की माला गले में पहनने से और इसके हृदय प्रदेश पर लगे रहने से संस्पर्श द्वारा यह हृदय को बल देती है, इससे रक्त की शुद्धि होती है और रक्त परिभ्रमण में दोष उत्पन्न होने पर इसके प्रभाव से नष्ट हो जाते है। इससे रक्तचाप सामान्य बना रहता है। यह ब़़ढे हुए रक्तचाप को नियंत्रित करता है। इसकी १०८ की माला या इसके पांच नग या केवल एक रुद्राक्ष के धारण से भी लाभ होता है। औषधी में इसके फल, बीज, भस्म, छाल व पत्तों का प्रयोग होता है। रुद्राक्ष के पत्तों का रस जठराग्नि को प्रदीप्त करता है, यह पौष्टिक तथा कामोद्धीपक होता है।

|| जय श्री कृष्ण ||

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