Sunday, July 17, 2011

मानव

मानव प्रकृति की सर्वश्रेष्ठ रचना है क्योंकि वही एक ऐसा प्राणी है, जो बुद्धि-विवेक से युक्त है एवं ज्ञान प्राप्त करने योग्य है। ‘श्रीमद्भागवत’ में उल्लेख है कि जगत्पिता ब्रह्मा सृष्टि-रचना काल में जब अत्यधिक प्रसन्न हुए, तब समग्र सृष्टि के निर्माण के अन्त में अपने श्रेष्ठतम युवराज के रूप में अपने मन की सत्ता से अर्थात मनः शक्ति से विश्व की अभिवृद्धि करने वाले मनुओं की रचना कर उन्हें अपना वह पुरुषाकार शरीर दे दिया (स्वीयं पुरं पुरुषं)। इससे पूर्व अन्य उत्पन्न देव, गंधर्वादि ने हर्षपूर्वक ब्रह्माजी को प्रणाम करते हुए कहा, ‘‘देव आपकी यह रचना सर्वश्रेष्ठ है। इससे श्रेष्ठ रचना और नहीं हो सकती। इस नर देह में प्राणियों के अभ्युदय तथा निःश्रेयस के समस्त साधन विद्यमान हैं। अतः इसके द्वारा हम सभी देवता भी अपनी छवि ग्रहण कर संतुष्ट हुआ करेंगे।’’ भाव यह है कि यह मानवी काया सुरदुर्लभ है। देवता भी इसे श्रेष्ठ मानते हुए उसके माध्यम से सिद्धियाँ हस्तगत करने की कामना किया करते हैं।

No comments:

Post a Comment