Monday, July 11, 2011

आत्मसाक्षात्कार

आत्मसाक्षात्कार का पूर्णतया संपादन करनेवाला ही ब्राह्मण होता है... यह आत्मा ही लोक, परलोक और समस्त प्राणियों को भीतर से नियमित करता है... सूर्य, चंद्रमा, पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, तारागण, अंतरिक्ष, आकाश एवं प्रत्येक क्षण इस आत्मा के ही प्रशासन में हैं.. यह तुम्हारा आत्मा अंतर्यामी अमृत है.. आत्मा अक्षर है, इससे भिन्न सब नाशवान् हैं.. जो कोई इसी लोक में इस अक्षर को न जानकर हवन करता है, तप करता है, हजारों वर्षों तक यज्ञ करता है, उसका यह सब कर्म नाशवान् है... जो कोई भी इस अक्षर को जाने बिना इस लोक से मरकर जाता है वह दयनीय है, कृपण है और जो इस अक्षर को जानकर इस लोक से मरकर जाता है वह ब्राह्मण है......
गुणातीतो अक्षर ब्रह्म भगवान पुरुषोत्तमः , जानो ज्ञान्मिदम सत्यम मुच्च्य्ते भाव बन्धनात .

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