Wednesday, June 15, 2011

मानव को स्वस्थ एवं सुखी रहने

प्रत्येक व्यक्ति जीवन में सुख चाहता हैं तथा सुख-प्राप्ति की दिशा में दिन-रात प्रयत्न करता है। किन्तु कभी-कभी मानसिक तनाव मनुष्य को सुख से दूर हटा देता है। क्या हम इस तनाव से मुक्ति पा सकते हैं? अवश्य ही। क्या हम खोये हुए आत्मविश्वास को भी पुनः पा सकते हैं? हाँ, निश्चय ही।

आप जीवन के अस्तित्व और सुख की चाह को तो स्वीकार करते ही हैं, क्योंकि उनका प्रत्यक्ष अनुभव आपको होता है। पुनर्जन्म आदि के कुछ सिद्धांत तो विवादास्पद हो सकते हैं, वे सर्वमान्य नहीं है, किंतु वर्तमान को सुखमय बनाने की मनुष्य की लालसा एवं क्षमता तो निर्विवाद है। सर्वप्रथम चिन्तन और अवधारणा की इकाइयों के रूप में परस्पर जुड़ी हुई लगभग दस-बारह अरब कोशिकाओं से युक्त अत्यन्त संवेदनशील मानव-मस्तिष्क को व्यर्थ बोझ और तनाव से मुक्त रखने के उपाय करना अत्यन्त आवश्यक है। प्रत्येक मस्तिष्क-कोशिका (न्यूरोन) तंत्रिका निकाय नर्वस सिस्टम की एक अत्यन्त सूक्ष्म इकाई होती है जो जटिलताओं के कारण विराटतम संकलक (कम्प्यूटर) की अपेक्षा भी अनन्तगुणा विलक्षणा होती है। कोई भी दो न्यूरोन समान नहीं होते हैं तथा प्रत्येक न्यूरोन में लगभग दो करोड़ आर० एन० ए० अणु होते हैं, जिनमें से प्रत्येक जीव रसायन के चमत्कार से एक लाख प्रकार के प्रोटीन बना सकता है। चिन्ता और भय मानव के असीम शक्तिसम्पन्न मस्तिष्क को, अनावश्यक बोझ डालकर, सतत क्षीण बनाते रहते हैं। आज की सभ्यता इस दिशा में मानव के लिए एक अभिशाप बन गयी है। यदि आप निश्चय कर लें कि आपको चिंता एवं भय से मुक्त होकर सुखी रहना है तो आपका जीवन सुखमय हो जायगा। आप विश्वास करें कि प्रकृति के सबसे बड़े चमत्कार, मानव-मस्तिष्क, में समस्याओं को चुनौती देने और संकटो से जूझने की अद्भुत क्षमता है, किंतु आपका संकल्प करना आवश्यक है। अतः आप आज ही और अभी वज्र संकल्प कर लें कि आपको सदा सुखी होना है और आप निश्चित रूप से सुखी हो सकते हैं। बस, अपने विचारों एवं सोचने के तरीकों में परिवर्तन लाने तथा जीवन के प्रति दृष्टिकोण को बदल डालने की आवश्यकता है। धैर्य से काम लें और इस संकल्प को पूरा करके छोड़ें।'कारज धीरे होत है काहे होत अधीर। समय पाय तरुवर फरै, केतिक सींचौ नीर।' धैर्य रखो। धैर्य की महिमा अनन्त हैं। धैर्य के साथ विश्वास एवं आशा को भी दृढञ रखना सीखें। धैर्य धारण करना कठिन होता है, किंतु उसके फल मीठे होते हैं।
जीवन का सार और सुख का रहस्य दो आँसुओं में निहित हैं-दूसरों के गम के आँसू पोंछकर प्रसन्नता का एक आँसू अर्जित करना तथा दूसरा आँसू एकांत में भाव-विभोर होकर प्रभु के प्रति कृतज्ञतापूर्वक बहाना कि उसने आपको सेवा करने का अवसर तथा उसके लिए क्षमता प्रदान की। बस, इतना ही समस्त धर्मों का संदेश हैं।
आज 'प्रोग्रेसिव' के नाम पर ईश्वरतत्व को नकारना एक फैशन हो गया है। ज्यों-ज्यों भौतिक प्रगति हो रही है, मानव की मानवता विलुप्त होती जा रही है। कलह और अशांति व्यापक रोग की भाँति फैलते जा रहे हैं। अतएव आध्यात्मिकता की आवश्यकता बढ़ती जा रही है। अशांति का उपाय आध्यात्मिकता है। धर्मों के नाम पर परस्पर घृणा का प्रचार करनेवाले तथा युद्ध भड़कानेवाले धर्म के तत्व एवं उद्देश्य को नहीं समझते हैं। संत किसी एक धर्म के खूंटे से नहीं बँधते हैं और सत्य का सत्कार करते हैं, वह चाहे जहाँ भी प्राप्त हो। एक सच्चा मानव मंदिर, गिरजा, गुरुद्वारा, मस्जिद को समान रुप से पवित्र मानता है तथा उसे अनेक मार्गों (धर्मों) के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। अपनी व्यक्तिगत अनुभूति के आधार पर ईश्वरतत्व को पहचानना तथा अपने स्वभाव के अनुसार उसके साथ एक व्यक्तिगत नाता स्थापित करना ईश्वर-प्राप्ति का श्रेष्ठ मार्ग है। देश, भाषा और ग्रंथ में बाह्य पवित्रता खोजनेवाले लोग जरा आन्तरिक भावनाओं की पवित्रता का भी तो महत्व समझें। ईश्वर का संबंध भावना से ही है, भाषा आदि से नहीं। धर्म के नाम पर घृणा-प्रचार एक हास्यास्पद विडम्बना है।
ईश्वर सच्चिदानन्द है, असीम शक्ति का भंडार है। ईश्वर हमारे लिए एक अनन्त एवं अक्षय शक्तिस्रोत है। यदि आपका आत्मविश्वास विलुप्त हो चुका है, आप प्रभु भक्ति के द्वारा उसे पुनः प्राप्त कर सकते हैं। भावपूर्ण प्रार्थना करना एक विचित्र संबल देता है। हम मंत्रबल को भी विस्मृत कर चुके हैं। मंत्रजप से अद्भुत शक्तियाँ जाग जाती हैं। दो-चार दिन श्रद्धापूर्वक एक मंत्र का जप करके ही हमें इसका अनुभव हो सकता है। मन्त्रजप के सहारे सारी भीतरी कुण्ठाएं परिसमाप्त हो सकती हैं तथा नूतन शक्तियों का प्रादुर्भाव हो सकता है। खेद, हम ईश्वरीय शक्तियों को भुला बैठे हैं। जरा मन के द्वार खोलें! शक्ति का एक असीम, अथाह भण्डार हमारे भीतर सुरक्षित हैं। हमें उससे संबंध जोड़ने की आवश्यकता है। सर्वशक्तिमान् परमेश्वर असीम शक्ति का अक्षय स्रोत हैं। हमें प्रभु की दयामयता में दृढ़ आस्था रखनी चाहिए। प्रभु की सजीव उपस्थिति को अपने चारों ओर देखना और अनुभव करना चाहिए। ईश्वरीय शक्ति में आस्था रखना कठिन हैं, किंतु उसके लाभ अकल्पनीय होते हैं। हम उसके साथ संबंध जोड़कर शक्ति एवं शान्ति पाने के अधिकारी हैं। पिता की विरासत पुत्रों को सुलभ हो सकती है; किंतु हम नाता तो जोड़ें।
जीवन में पल-पल नव-निर्माण हो रहा है। उत्साह की तरंगों से मन को तरंगित एवं आप्लावित कर दें। निराशा हमारे स्वभाव का अंग नहीं है, विजातीय हैं। निराशा को भगाओ, आशा को जगाओ, आज और अभी जगाओ। जीवन का यही संदेश है। हमारे मन में कोई पुकार-पुकार कह रहा है कि मानव को जीवन सुख से रहने के लिए मिला है, सुख मानव का जन्मसिद्ध अधिकार है। यह सृष्टि सुखप्रधान हैं, दुःखप्रधान नहीं है और मानव न केवल स्वभाव से सुख चाहता है, वह सुख पाने में सक्षम भी है। सुखवृत्ति को ठीक प्रकार से जगाकर मनुष्य खोये हुए सुख को पुनः पा सकता है।
जीवन एक सुनहला वरदान है। मानव को स्वस्थ एवं सुखी रहने के लि

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