Wednesday, June 15, 2011

जिन्दगी की बेल

 हमें समझ लेना चाहिए की जिन्दगी की बेल के सभी अंगूर मीठे नहीं है; कुछ मीठे है और कुछ खट्टे भी हैं। दुःख और सुख जीवन के अविभाज्य अंग हैं, और हमें निराशा, अपमान एवं दुःख को जीवन का अपरिहार्य अंग मानकर स्वीकार करना पड़ेगा, अन्यथा हम आगे नहीं बढ़ सकते हैं और शोकसन्तप्त होकर विनष्ट हो जायेंगे। विवशता एवं असाध्यता के साथ समझौता कर लेना, उसे सहर्ष अपना लेना बुद्धिमत्ता है। जीवन में यथार्थता को स्वीकार कर लेना और उसके साथ समायोजन (एडजस्टमेण्ट) करके संतोष धारण कर लेना सुख-शांति की दिशा में एक आवश्यक पग है। यह एक तथ्य है कि हम किसी भी व्यक्ति तथा किसी भी परिस्थिति में पूर्णतः संतुष्ट नहीं होते। समझौता तो पग-पग पर आवश्यक होता है। सुखी एवं स्वस्थ जीवन अपने साथ, परिवार के साथ समझौतों की एक श्रृंखला है। जीवन का उदगम भी स्वयं समझौता है। समझौता जीवन का प्रमुख सिद्धांत है। किसी भी नारी विफलता को पूर्ण पराजय मान लेना एक भयंकर भूल है। विवेकशील व्यक्ति किसी भी स्थिति को जय-पराजय की तराजू में नहीं तौलता है। उसे तो प्रत्येक फल में प्रभु-इच्छा का दर्शन होता है, जिसे वह सहर्ष शिरोधार्य कर लेता है। वह अन्याय के प्रतिशोध में संघर्ष करता है, किंतु फल को स्वीकार कर लेता है। वह संघर्ष को कोसता नहीं है, उसका स्वागत करता है, क्योंकि उससे व्यक्तित्व में निखार आता है। सन्त तुलसीदास कहते हैं, 'सुकृतसेन हारत जितई है' अर्थात् उत्तम कर्म की सेना (शक्ति) हारकर भी जीतती है क्योंकि पुण्य सदा विजयी है। अपने आपको गाली देना, अपने भाग्य को कोसना तुंरत छोड़ दें-यदि आपने जीवन में सुख की ओर बढ़ने का संकल्प किया है। प्रत्येक स्थिति में प्रसन्न रहना मानों दुर्भाग्य को भी चुनौती देना है। वह इन्सान क्या जो ठोकरें नसीब की न सह सके। दरियाए तूफान में किश्ती छोड़कर उस मालिक के सहारे मौज और मस्ती में रहना चाहिए।'मुसीबत में बशर में जौहरे मर्दाना खिलते हैं, मुबारिक बुजदिलों को गर्दिशे किस्मत से डर जाना।' मुसीबत की चुनौती स्वीकार कर उसका डटकर मुकाबला करना चाहिए। परीक्षा के समय भाग खड़े होना अथवा रोने लगना कायरता है। लोग जिसे सौभाग्य कहते हैं, वास्तव में वह परिश्रम का फल होता है, अवसर का सदुपयोग होता है। जिंदगी हिम्मत का सौदा है। प्रयत्न करने पर भी बार-बार विफल होने के कारण जब दिल टूट रहा हो, तब भी गिर-गिरकर अपने को संभालकर उठ खड़ा होना चाहिए और संकट की चुनौती को स्वीकार करके आगे बढ़ते रहना चाहिए। हिम्मत हारकर मनुष्य संतुलन और विवेक खो बैठता है तथा विषय परिस्थित को अधिक विषय बना देता है। साहस, संतुलन और विवेक द्वारा ही गंभीर संकट का दृढ़तापूर्वक सामना किया जा सकता है। वज्र संकल्प लेकर उठे और हिम्मत से आगे बढ़े। जीवन का प्रवाह सदैव गतिमान रहता है तथा व्यक्ति एवं स्थिति स्थिर नहीं रह सकते हैं। जो आगे नहीं बढ़ रहा है, वह पीछे या इधर-उधर हट रहा है तथा पतन के समीप जा रहा है। इन्सान को हिम्मत से आगे ही आगे बढ़ते रहना चाहिए। जीवन में साहस और धैर्य ज्ञान की अपेक्षा अधिक उपयोगी सिद्ध होते हैं। धैर्य का अर्थ है, शान्तिपूर्वक कष्ट सहन करना तथा पुनः प्रयत्न करना। अपनी मंजिल तय करते हुए लक्ष्य की ओर हौसले से आगे बढ़ते रहने में ही जीवन का सुख छिपा पड़ा है।'मंजिल पै जिन्हें जाना है, शिकवे नहीं करते, शिकवों में जो उलझे हैं, पहुँचा नहीं करते।' एक कहावत है-'हिम्मते मरदाँ, मददे खुदा।' हिम्मत करनेवाले को ही प्रभु की सहायता मिलती है। जब मित्र तथा संबंधी वचन और आश्वासन देकर भी धोखा करें, इससे हम मन में आघात न मानें बल्कि संसार में यथार्थ रूप को समझें, स्वार्थरत जगत् को समझें और जीवन की वास्तवकिता को स्वीकार करें। विचित्र विडम्बना तो यह है कि उन धोखा देनेवाले बहुरूपियों से भी स्थायी लड़ाई मेल नहीं ली जा सकती है और सावधान रहते हुए फिर उनके साथ काम चलाना पड़ता है। सत्पुरुष मन में कटुता नहीं आने देते हैं। यदि कोई वस्तु टूट जाय अथवा खो जाय अथवा कोई क्षति हो जाय, उस पर क्लेश करना भी सुख-वृत्ति को लात मारना है। यदि बच्चे या नौकर से कुछ टूट गया, तो बस घर में उस पर आपत्ति आ गयी और कोहराम मच गया। यह मूर्खता त्याज्य है। अपने से छोटे, अपने अधीनस्थ एवं आश्रित जन के साथ बड़ा होने के कारण कठोर व्यवहार करना सबको आपका विरोधी बना देगा। जहाँ संकेतमात्र से अथवा मुस्कान मात्र से आज्ञा-पालन हो रहा हो, वहाँ मुँह चढ़ाकर तथा घुड़ककर आज्ञा देना नासमझी है। चतुर सवार घोड़े को मामूली लगाम हिलाने से मुड़ने, चलने और रुकने का आदेश दे देता है तथा मूर्ख सवार चाबुक मार-मारकर उसे चाबुक की आदत डाल देता है। आपके अधीनस्थ जन, (घर में या दफ्तर में) आपके छोटे भाई, बहन, बच्चे और परिचायक आपसे प्रेम करना चाहते हैं, आपका कृपा-पात्र बनना चाहते हैं और संबंध को प्रगाढ़ करना चाहते हैं, किंतु आप उन्हें दुर्नीति एवं दुर्व्यवहार से अपना विरोधी बना देते हैं। उनको उचित आदर दें, उनके मन में अपने प्रेम की मोहर लगा दें तथा मधुरता से उन्हें जीतकर ही उनसे काम करायें। छोटा समझकर उपेक्षा करना भूल है।'रहिमन देखि बड़ेन को लघु न दीजिअ डार, जहाँ काम आवै सुई कहा करै तलवार।' एक छोटा-सा तिनका आँख में या दाँत में घुसकर परेशान कर सकता है।

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