Tuesday, June 21, 2011

जैसा कर्म


जैसा कर्म करेगा,वैसा फ़ल देगा भगवान !!
आत्मा सो परमात्मा के सिद्धान्त के अनुसार कर्म करने की तीन स्थितिया मानी जाती हैं-पहली मनसा,दूसरी वाचा,और तीसरी कर्मणा,मनसा से किसी प्राणी विशेष के लिये बुरा सोचना ही पाप बन जाता है,वाचा से किसी के प्रति अज्ञानता वश बुरा बोलना भी पाप हो जाता है,और कर्मणा से किसी प्राणी विशेष के प्रति बुरा करना भी पाप बन जाता है,मन से किसी के प्रति अगर कोई बुरा सोचता है तो लोग उसके बारे मे भी बुरा सोचने लगते है और,बुरा कहने से लोग भी बुरा कहते है,और बुरा करने बुरा करते भी है.महाभारत के के अनुसार कर्म संस्कार प्रत्येक अवस्था मे जीव के साथ रहता है,जीव पूर्व जन्म में (पीछे की जिन्दगी में) जैसा कर्म करता है,वैसा ही फ़ल भोगता है,अपने जीवन मे पहले से किये गये कार्य अपने समय पर फ़ल अवश्य देते है,अंशावतार के अनुसार माता पिता का अंश होने के कारण बालक गर्भ से ही कर्म फ़ल का भुगतान लेना चालू कर देता है,यानी माता पिता जिनका अंश वह स्वयं है,के द्वारा द्वारा पूर्व मे किये गये कार्यों का फ़ल बालक को भी मिलते है,राजा दसरथ ने श्रवण को मारा था और उनके माता पिता का श्राप राजा दसरथ के साथ भगवान श्री राम को भी भोगने पडे थे,क्योंकि वे भी राजा दसरथ के अंश थे.प्रारब्ध का फ़ल गर्भावस्था से ही भोगना पडता है,जीवन की तीन अवस्थाओं बाल युवा और वृद्ध में जिस अवस्था मे जैसा कर्म किया जाता है,उसी अवस्था में उसके फ़ल को भोगना पडता है,जिस शरीर को धारण करने के बाद जो कर्म किया जाता है उसी शरीर के द्वारा ही उस कर्म को भोगना पडता है,इस तरह से प्राब्ध का कर्म सदा कर्ता का अनुगामी होता है.

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