Tuesday, June 21, 2011

कर्म के अनुसार ही आयु

कर्म के अनुसार ही आयु

योग दर्शन के अनुसार कर्म की जड़ में जाति आयु और भोग तीनो निहित रहते है ! कर्म के अनुसार ही जीव का निम्न या उच्च वर्ग मे जन्म होता है ! प्रारब्ध कर्म ही आयु का निर्धारक है,अर्थात जिस शरीर में जिस पहले किये गये कर्म का जितने दिन का भोग होगा,वह शरीर उतने दिन तक ही स्थित रह सकता है.उसके बाद नवीन कर्म की भोग स्थिति दूसरे शरीर मे होती है ! कर्म के भोग पक्ष का यही विधान है ! संसार के सुख और दुख कर्म के अनुसार ही होते हैं ! शरीर के अन्गों का निर्माण भी पूर्व कर्म के अनुसार होता है ! शरीर की रचना और गुण का तारतम्य भी पुरातन कर्म का ही परिणाम है ! उसमे दोष और गुण का संचार धर्माधर्म रूपी कर्म का ही संस्कार है !!
!! राधे राधे !!

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