Thursday, June 30, 2011

कबहूँ न छोडूं साथ

अलौकिक को लौकिक दृष्टि से यदि आप देखेंगे , जाचेंगे , परखंगे तो भूल हो जाएगी. ऐसी भूल अक्सर हम सभी करते हैं . तभी तो भगवन ने कहा है , जो मेरी लीला को जान लेता है , वह जनम मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है . इस लीला में जन्म और कर्म दोनों आजाते हैं . शास्त्रों में बार बार कहा गया है की देवता की पूजा - अर्चना करने के लिए देवत्त्व को धारण करें अर्थात देवता बने . इसी तरह अवतार को समझाने के लिए भी दिव्यदृष्टि और सत्वबुद्धि चाहिए . यहाँ एक बात और बिचार करने योग्य है की सत्य को प्रमाणों की आवश्यकता नहीं होती और यह भी की प्रमाण सत्य की ओर संकेत मात्र करते हैं , सत्य को जानने के लिए जिज्ञासु साधक को प्रमाणों का अतिक्रमण करना पड़ता है, और भगवान् के भरोसे और स्वविवेक और आत्मज्ञान से आगर बढ़ाना होता है , क्योंकि भगवान् की यह प्रतिज्ञा है की ....
जहां भक्त मेरो पग धरे , तहां धरून मैं हाथ ....
पाछे पाछे मैं फिरूं , कबहूँ न छोडूं साथ

1 comment:

  1. धर्मं के लिए जो जीता है , और धर्माहित के लिए जो मरता है...

    उसकी हर सांस है वेद हमारे , उसका हर कर्म एक गीता है ..

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