Wednesday, June 15, 2011

। मस्ती की आदत डाल लें।

। मस्ती की आदत डाल लें। मस्त स्वभाव के बिना आप छोटी-छोटी बातों पर बड़ी चिन्ता करने लगेंगे, चिड़चिड़ें होकर लड़ने लेगेंगे, दुःखी रहने लगेंगे और रक्तचाप आदि के शिकार हो जायेंगे। कुछ लोग छोटी-सी मिट्टी की बमी पर ऐसे चढ़ते हैं, जैसे पर्वत पर चढ़ रहे हों। छोटी-सी बात पर ऐसी चिन्ता करते हैं, जैसे घोर संकट आ गया हो। मस्ती, प्रभु के प्रति भक्ति और मनुष्यों के प्रति अथाह प्रेम जगाने से स्वयं आविर्भूत हो जाती है।
व्यर्थ ही निरन्तर गम्भीरता, गारिमा का भारी बोझ सिर पर उठाये हुए हम खिलखिलाकर हँसना भूल गये तथा बात-बात पर चिढ़ने लगे। चिढ़ानेवाला व्यक्ति दुष्ट और चिढ़नेवाला मूर्ख होता है। छोड़ो, छोड़ो चिढ़ना और चिढ़ाना। अपना लो हँसना और हँसाना। हास्य और विनोद को स्वभाव का अँग बना लो। कटुता का उत्तर मधुर भाषा में देना सीख लो।
सदा रोते रहने का स्वभाव मनुष्य को दयनीय बना देता है। ऐसे व्यक्ति के साथ कौन बैठना पसंद करेगा जो दुःख की गाथा ही सुनाता रहता है तथा रोता ही रहता है? यदि कभी रोना भी पड़े तो प्रभु के समक्ष अकेले रो लेना चाहिए। कभी-कभी रोना ठीक हो सकता है, किंतु सदा रोते ही रहना तो जीवन को बोझ बना देता है।
अपमान का भय, हानि का भय, रोग का भय, मृत्यु का भय, अनेक प्रकार के भय हमें घेरे ही रहते हैं तथा सारा जीवन यों ही रोते, डरते बीत जाता है। भय बार-बार मन को विचलित कर देता है। भय भूखे भेड़िये की भाँति मनुष्य के स्वास्थ्य और सुख को खा जाता है। चिन्ता हमें पंगु बनाये रखती है। काल्पनिक चिन्ताओं में हम अपनी जीवन-शक्ति का क्षय करते ही रहते हैं। किसी मनुष्य के कोसने (दुर्भावना, ईर्ष्या, क्रोधावेश इत्यादि के कारण दुर्वचन कहने) पर ध्यान ही नहां देना चाहिए। किसी के कोसने से कभी कुछ नहीं बिगड़ता है, बल्कि कोसनेवाले का ही पुण्य क्षीण होता है। भय के कारण अपशुकन भूत-प्रेत आदि के भ्रम में पड़कर किसी तिथि को, कभी किसी समय को, कभी किसी संख्या को, कभी किसी पशु को, कभी किसी व्यक्ति को अशुभ कह देते हैं तथा बच्चों के कोमल मन पर भी कुप्रभाव डाल देते हैं। संसार में असंख्य ज्योतिषी और हस्त-रेखा-विशारद कहलानेवाले चतुर व्यक्ति दुःखीजन के दुःख का अनुचित लाभ उठाकर, उन्हें भयभीत कर उनका शोषण कर रहे हैं। जिन्हें अपने भविष्य का ज्ञान नहीं है, वे दूसरे के भविष्य का कथन करते हैं! मनुष्य का भविष्य हाथ की रेखाओं और ग्रहों द्वारा कदापि बाँधा नहीं जा सकता है। मनुष्य की इच्छा-शक्ति और पुरुषार्थ मनुष्य का भविष्य बनाती है, न कि उसके हाथ की रेखा और ग्रह। समझदार व्यक्ति ग्रह के चक्र से छूटकर ग्रहपति परमात्मा से नाता जोड़ता है। परमात्मा सर्वसमर्थ है। अज्ञात (ग्रहों और रेखाओं) के कुचक्र से छूटकर कर्म की ओर बढ़ना विवेक हैं। अनिश्चित का भरोसा करने से मन दुर्बल होता है। समस्या का उपाय तो पुरुषार्थ करना है। प्रारब्ध, नियति अथवा दैव अपना काम करे और हम अपना काम करें। हमारा श्रेष्ठ पथप्रदर्शक हमारा अपना उत्साह है। भविष्य-वक्ताओं के कुचक्र में फँसना अविवेक है, भटकना है। अन्धविश्वास में पड़ना बुद्धि का अपमान है। बृहस्पति स्मृति में लिखा है कि शास्त्र की बातों को भी बुद्धिरहित होकर मानने से धर्म-हानि होती है।
केवलं शास्त्रमाश्रित्य न कर्त्तव्यो विनिर्णयः।
युक्तिहीनविचारे तु धर्महानिः प्रजायते।
अर्थात् केवल शास्त्र का आश्रय लेकर कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए। बिना युक्ति सोचे हुए विचार करने पर तो धर्महानि हो जाती है। इसी प्रकार की एक अन्य उक्ति हैः
यस्त नास्ति स्वयं प्रज्ञा शास्त्रं तस्य करोति किम्।
लोचनाभ्यां विहीनस्य दर्पणः किं करिष्यति॥
अर्थात् जिसके पास प्रज्ञा (विवेक, विचार) नहीं है, शास्त्र उसका क्या उपकार कर सकता है? नेत्रों से विहीन व्यक्ति का दर्पण भी क्या उपकार करेगा? नेत्रों को बंद करके मनुष्य प्रकाशित लैम्पपोस्च से भी टकरा जाता है, दिन में भी भटक जाता है। सच्चा बुद्धिजीवी कभी प्रज्ञा-नेत्र को मूँदकर नहीं बैठता है।

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