Wednesday, June 15, 2011

मेरी हिम्मत देखिये

'मेरी हिम्मत देखिये, मेरा सलीका देखिये,
जब सुलझ जाती है गुत्थी, फिर से उलझा देता हूँ मैं।'
-ऐसे लोगों से सावधान रहना चाहिए।
जब तक संकट न आये, उसकी चिन्ता करना निराधार है और जब संकट आ जाए तब भय करना संकट को उग्र करना, काम को बिगाड़ना है। उत्साह से उसका सामना करें। भय संकट को उग्र तथा हमें दीन बना देता है। पहले अपने भय को जीत लें। भय घर में घुसा हुआ हमारा भीषण शत्रु है। भय को भगाओ। भय से संदेह उत्पन्न होता है और वह आत्मविश्वास एवं साहस को तोड़कर शक्ति को चाट जाता है, शक्ति के स्रोत को सुखा देता है। भय के कारण हम घटनाओं एवं व्यक्तियों को भीषण और अपने को असहाय समझ लेते हैं। सौ में से निन्यानबे बार हम व्यर्थ की अनहोनी कल्पनाएं करते रहते हैं, जिनका कोई आधार नहीं होता है। भयानक वस्तुस्थिति की अथवा किसी व्यक्ति की उपेक्षा तो कदापि न करें, किंतु व्यर्थ ही उसे अति-महत्व भी न दें। जीवन एक सतरंगी धनुष के समान विविधताओं से भरा पड़ा है। हमें उसका रस लेना चाहिए तथा कभी उत्साह नहीं खोना चाहिए।
भय हमारी बुद्धि की हार है, हमारे आत्मविश्वास की हार है। मनुष्य सृष्टि का श्रृंगार है, किंतु भयभीत मनुष्य तो सृष्टि का निकृष्टतम वस्तु है। भय एक मिथ्या, काल्पनिक भ्रम है। आत्मविश्वास में अनन्त शक्ति है। वह आपको ऊँचे-से-ऊँचे शिखर पर ले जा सकती है। आत्मविश्वास को जगाना शुरु करें और कुछ दिनों में ही आपमें परिवर्तन आ जायेगा। आत्मविश्वास आस्तिकता का प्रथम चरण है, आत्मविश्वास का अभाव नास्तिकता का प्रारम्भ है।"हाँ, हाँ, मैं क्या नहीं कर सकता हूँ? मैं अवश्य कर सकता हूँ और सफल हो सकता हूँ। मैंने ब़ड़े-बड़े काम किये हैं, और आगे भी कर दूँगा। प्रभु ने मेरा हाथ पकड़ रखा है, प्रभु-कृपा मेरे साथ है।" भय की सीमा नहीं होती है, कहाँ तक भय मानें?"
प्रायः रात्रि के अन्धकार में निद्रा के समय भय और चिन्ता आकर हमें पकड़ लेते हैं। उस समय मन के द्वार में केवल हरिस्मरण का प्रवेश होने दें। मन्त्र-जप पहरेदार की भाँति निद्रा की रक्षा करता है। अनिद्रा होने पर बेचैन न होना चाहिए, क्योंकि बेचैनी से उत्पन्न तनाव अनिद्रा को द्विगुणित कर देता है। इसे भी प्रभु की कृपा से प्राप्त पूजा का सुअवसर मानकर लेटे हुए ही अथवा बैठकर मंत्रजप प्रारंभ कर दें और जप करते ही रहें, जब तक निद्रा न आये। अपने मानसिक मंत्रजप को स्वयं सुनने का प्रयत्न करने से अचिर ही निद्रादेवी आपको अपनी गोद में ले लेगी।'राम भरोस हृदय नहिं दूजा', इसे जप करके देखें। निद्रा लाने के लिए नशीली चीजों का सेवन करना मानों खत्ती से खाईं से गिर जाना है।
कुछ लोग तो अति व्यस्त रहने की शिकायत करते हैं कि वे काम के बोझ से दबे जा रहे हैं। प्रायः अच्छे काम का इनाम और अधिका काम होता है तथा खराब काम करने का इनाम काम न मिलना होता है, किंतु यह शिकायत की बात नहीं है। काम करने से न केवल मनुष्य दक्ष होकर काम पर हावी हो जाता है, बल्कि अन्य लोग भी उसे दक्ष मानकर उससे सलाह लेते हैं और उसका सत्कार करते हैं। काम को बोझ मानने से वह कष्टप्रद एवं शक्तिशोषक हो जाता है तथा रुचि लेने पर वह सुखप्रद बन जाता है। सामान्यतः परिश्रम करके ही अथवा अपने हिस्से का काम करने पर ही आपको भोजन करने का अधिकार है। बिना काम किये हुए धन कमाना, भोजन करना, अनधिकार चेष्टा है। काम तो आपको ही करना है, फिर रोकर क्यों करें, हँसकर क्यों न करें? अपने कार्य को तुच्छ अथवा छोटा मनाना और अपने-आपको कार्य की अपेक्षा बहुत बड़ा समझना चारित्रिक दोष है। काम को तुच्छ अथवा छोटा मानने से कर्तव्यपालन में शिथिलता आ जायगी जो मनुष्य को निकृष्ट बना देगी। प्रस्तुत लघु कार्य को ठीक प्रकार करने से बड़े काम भी स्वयं मिलेंगे और उन्नति का मार्ग स्वयं खुल जायेगा। लगन से काम करनेवाले मनुष्य को गहरा आत्म-संतोष तो सदा मिलता ही है।

No comments:

Post a Comment